Monday, October 8, 2018

"Impulses"--463--"दोष-भाव-रोपण"


"दोष-भाव-रोपण"

"सहजियों के बीच ये बहुदा देखा गया है कि कुछ पुराने सहजी नए सहजी के अन्तर्मन में अपनी अज्ञानता सीमित 'ज्ञान-सूचनाओं' के आधार पर अनेको प्रकार के दोष भाव उत्पन्न कर देते हैं।

जैसे किसी सहजी को कह दिया जाता है कि उसके कुछ चक्र पकड़ रहे हैं, या नाड़ी असंतुलित हो रही है अथवा उनकर अंदर कोई भूत बाधा है। और वह नया नया सहजी अत्यंत डर जाता है और चिंतित होकर उनसे कुछ उपाय पूछना प्रारम्भ कर देता है।

इस प्रकार के नए सहजियों के द्वारा जब उस पुराने सहजी से अनेको चीजें पूछी जाती हैं तो मन ही मन वह पुराना सहजी अत्यंत प्रसन्न होता है क्योंकि इस पूछने की प्रक्रिया में उसका अंर्तनिहित 'अहम' खूब सन्तुष्ट हो रहा होता है।

जिससे उसे अपने भीतर कहीं एक बड़प्पन ज्ञानी होने का एहसास बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। ये एहसास बिल्कुल ऐसा ही मजा देता है जैसे ड्रग/शराब को ग्रहण करने के बाद आता है। और इस प्रकार से स्वम् में 'पहुंचे" हुए तथाकथित 'ज्ञानी' होने का नशा उनके सिर चढ़कर बोलने लगता है।

जिससे प्रभावित होकर वह महान सहजी भी उसको अपनी आधी-अधूरी ज्ञान-सूचनाओं के आधार पर ना ना प्रकार के उपाय बताते जाते हैं। यहां तक कि ऐसे महान लोग उन नए लोगों से ये तक कह देते हैं कि "श्री माता जी" तो प्रतिदिन उनसे बात करती हैं।

और वह बेचारा नया सहजी केवल और केवल उनकी बताई बातों पर ही आश्रित हो जाता है और उन्हीं बातों को प्रतिदिन अमल में लाते लाते भीतर ही भीतर कमजोर होता जाता है।

जितनी बार भी वह क्लीयरिंग करता जाता है उतना ही वह और शंकित होता जाता है और परिणाम स्वरूप वह सारे दिन अपने चक्र नाड़ियो ही साफ करता रहता है।

जबकि अक्सर ऐसी नकारात्मक बाते बताने वालों को वास्तव में अपने यंत्र में ठीक प्रकार से किन्ही तथ्यों को महसूस करना भी नहीं आता। किन्तु इधर उधर से पढ़ी, सुनी समझी हुई बातों के आधार पर वो किसी भी सहजी के बारे में अपनी धारणा बना भी लेते हैं।

और उस नए सहजी के मन मस्तिष्क में अच्छे से बैठा भी देते हैं कि वह नया सहजी वास्तव में बहुत बाधित है। जैसे एक होम्योपैथिक डॉ मरीज से पहले सारे लक्षण पूछता है और फिर अपनी पढ़ाई के आधार पर दवाई सुनिश्चित करता है।

जिसके कारण वह नया सहजी उन बातों को सच मान कर भीतर ही भीतर कुंठित होता जाता है और उसका अपने ऊपर विश्वास बिखरने लगता है और ही वो ठीक प्रकार से "श्री माता जी" पर ही पूर्णतया विश्वास कर पाता।

एक प्रकार से वो बताई गईं तकनीकों स्वच्छता-प्रक्रियाओं में उलझता ही जाता है और अंत में मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार हो जाता है। उसे सदा लगने लगता है कि उसके भीतर जरूर कोई 'आत्मा' घुस गई है जो उसको संचालित कर रही है।

इस प्रकार के कुछ पीड़ित सहजियों के केस इस चेतना के समक्ष आये हैं जो पूर्णतया मानसिक रूप से विक्षप्तता की ओर ही अग्रसर होते जा रहे थे।

वो पूरी तरह मानसिक रूप से सोची-समझी बाधाओं अपने भीतर किसी के होने के भ्रामक विचार में इस कदर जड़ हो जाते हैं कि वो एक साधारण मानवीय जीवन जीने के योग्य ही नहीं रह जाते।

जिसके कारण वो असामान्य व्यवहार करने लगते हैं और उनका असामान्य व्यवहार देखकर अन्य सहजी भी उन्हें भूत-बाधा से ग्रसित मानकर उनसे दूर दूर रहने लगते हैं जिस कारण उनका मानसिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाता है।

ऐसे लोगों में अनेको प्रकार की हीन भावनाएं जन्म लेने लगती हैं और वे अन्य लोगों के सामने जाने तक से घबराने लगते हैं।वो डरने लगते हैं कि कहीं कुछ और नए लोग भी उसके बारे में कुछ नकारात्मक बताने लगे जाएं।

और जब वो अपनी बुरी स्थिति के बारे में उन महान ज्ञानियों से बताते हैं और इससे बाहर निकलने का रास्ता पूछते हैं। तो वो और भी उन्हें गलत-सलत बाते बता कर उन्हें और भी उलझा देते हैं और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।

ऐसी मानसिकता से घिरे लोगों को सन्तुलन में स्थित करना अत्यंत कठिन होता है। बार बार इन पीड़ित सहजियों के यंत्र पर काफी देर तक कार्य करने ध्यानस्थ अवस्था में इनकी काउंसलिंग करने के उपरांत ही मामूली सा लाभ होता नजर आता है। हर बार जब भी ऐसे लोगों के सम्पर्क में आते हैं तो ऐसे सहजी अपनी पूर्वत अवस्था में पुनः पहुंचे होते हैं।

ये दशा अपने सहजियों की देखकर तो कई बार आंखों में आंसु तक जाते हैं और इन सहजियों को इस हाल में पहुंचाने वाले उन मूर्खता ही हद तक पहुंचे हुए उन 'अज्ञानी' सहजियों के लिए हृदय के भीतर रोष तक उत्पन्न होने लगता है।

उन्होंने जरा सा भी चिंतन नहीं किया कि वे लोग अपने ही सहज-साथियों की चेतना में एक खतरनाक वायरस डाल रहें हैं जो उन्हें अत्यंत कष्ट देगा उन्हें कहीं का नहीं रहने देगा।

यदि नए लोगों से बात करके कुछ अपने यंत्र के माध्यम से महसूस नहीं हो रहा था तो फिर अपने तथा-कथित बिना अनुभव वाले ज्ञान के द्वारा उनको क्यों कर पीड़ित किया ?

क्या "श्री माता जी" के गण देवताओं से जरा भी खौफ नहीं है कि वो नाराज होकर ऐसे उल्टा-सीधा बताने वालों का क्या हश्र करने वाले हैं ?

अपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के वाबजूद बिना किसी अनुभूति चिंतन के कुछ भी अनर्गल बताते हुए जरा भी लज्जा नहीं आयी ?

भोले भाले नए सहजियों को नकारात्मक बाते बताने वाले लोगों ने कुछ पल के लिए सोचा कि वो इन सहजियों की जिंदगी से खिलवाड़ करने जा रहे हैं ?

क्या मिला इन मासूम सहजियों को मानसिक विक्षिप्तता की ओर धकेल कर ?

यदि किसी भी सहजी के यंत्र से कुछ भी समझ नहीं आता अथवा आभासित होता तो अपना मुख खोलकर बिना सिर पैर की बाते बोलने की क्या आवश्यकता है ?

और यदि आपको कुछ नकारात्मक महसूस भी हो रहा है तो बोलने के स्थान पर अपने ध्यान में जाकर उन नए लोगों के यंत्र पर कार्य करें या "श्री माँ" से उनकी बाधा को दूर करने की प्रार्थना करें।तभी तो हम वास्तविक रूप में "श्री माँ" की संतान कहलाने का अधिकार प्राप्त करेंगे।

जरा हम सब ये चिंतन करें कि यदि हम सबको भी ध्यान में आने के शुरुआती दौर में "श्री माँ" ने हमें प्रेम से सम्हालने के स्थान पर हमारे अनेको दोष निकाल कर बता दिए होते तो क्या हम उनके "श्री चरणों" में स्थित रह पाते। उस समय हमारे यंत्रो में भी तो अनेको दोष बाधाएं रही होंगी।

यदि हम अपने को "श्री माँ" का बच्चा कहते हैं तो क्या हम सभी को भी "श्री माँ" की तरह अपने नए सहज साथियों को प्रेम से सम्हाल कर उनके यंत्र के दोषों को चुपचाप दूर करके उनको आगे बढ़ने में मदद नहीं करनी चाहिए ?

उनके यंत्र की कमियों का सभी जगह ढिंढोरा पीटकर उन लोगों में निर्भयता के स्थान पर भय को स्थापित कर हम कौनसा महान बन जाने वाले हैं ?

क्या ये सब निम्न हरकतें बातें करके हम अपने उत्थान को प्राप्त हो पाएंगे ?

अतः उन सभी तथा-कथित उच्च अवस्था को प्राप्त सहजियों से जो "श्री माता जी" से नित्य डायरेक्ट बात करते हैं। इस चेतना का विनम्र निवेदन है कि मेहरबानी करके आपसे अपने यंत्र के विषय में पूछने वाले किसी भी नए पुराने सहजीयों को नकारात्मक बातें बताएं।

चाहे उन सहजियों के यंत्र वास्तव में बाधित ही क्यों हों, उनको केवल और केवल उनके यंत्र को उन्नत करने के मार्ग की सुझाये जाएं तो बहुत उत्तम होगा।

और यदि कुछ भी पता लग पा रहा हो तो उनसे केवल और केवल "श्री चरणों" में पूर्ण श्रद्धा से समर्पित होने के लिए तो आसानी से बताया जा सकता है।

और नए सहजियों से इस चेतना का ये कहना है कि यदि आप सभी से कोई पुराना सहजी कुछ भी नकारात्मक बता दे तो आप को केवल एक ही कार्य करना है और वो है बिना किसी भी बात में उलझे "श्री चरणों" का ध्यान लगाएं।

हमारे यंत्र हमारे इस जीवन की समस्त प्रकार की पीड़ाएँ बाधाएं केवल और केवल "श्री माता जी" ही दूर करती हैं। जितना भी आपको किसी भी प्रकार का कष्ट महसूस हो उतना ही समय ध्यान का बढ़ाते जाएं।

एक समय ऐसा आएगा "श्री माँ" हम सभी को हमारे सभी प्रकार के कष्टों के एहसास से परे ले जाएगी।किसी भी सूरत में "श्री माँ" के प्रति अपने विश्वास में कमी आने दें फिर चाहे कोई कुछ भी कितना भी नकारात्मक क्यो बताता रहे, उनकी बातों पर तनिक भी ध्यान दें।

मेरी चेतना के मुताबिक ऐसे सहजी वास्तव में "श्री माँ" की सन्तान हो ही नहीं सकते जो सदा दूसरे सहजी के लिए नकारात्मक बाते बताते हैं।

ऐसे लोगों का हक़ीक़त में सहज से कोई लेना देना होता ही नहीं है, वो तो बस सहज के नाम पर अपना मान-मनव्वल करा कर अपने अहंकार से ही तुष्ट होते रहते हैं।

ऐसे तथाकथित सहजी तो स्वम् आगे बढ़ते हैं और ही अन्य सहजियों को आगे बढाने में मदद ही करते हैं। 

बल्कि ऐसे कुबुद्धि से ग्रसित सहजी तो केवल और केवल अनेको सहजियों के कष्टों पतन का कारण ही बनते हैं। और स्वम् भी 'नरक' की ओर अग्रसर होते हुए अपने लिए भी अनेको कष्टों के द्वार खोल देते हैं।"
----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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