Wednesday, October 17, 2018

"Impulses"--465--"सहज-सत्ता-सुख-एक जड़तम मतिभ्रम"


"सहज-सत्ता-सुख-एक जड़तम मतिभ्रम"

"एक बहुत ही हास्यपूर्ण बात बड़े सहज सेमिनारों पूजाओं में कुछ सहजियों की अक्सर देखने को मिल जाती है।

सहज के इन कार्यक्रमों में दूसरे शहरों राज्यों से भी बहुत से सहजी आते हैं जो अन्य सहजियों से मिलने के साथ साथ उस सामूहिकता के स्थान के सहजियों से भी मिलते हैं।

आपस में साथ साथ ध्यान में बैठने, और गहनता पाने, आत्मसाक्षात्कार देने, चक्रों नाड़ियो की विभिन्न समस्याओं को दूर करने अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को भी एक दूसरे के साथ बांटते है।

ताकि ध्यान में कुछ और तरक्की हो सके और यदि कहीं कुछ उन्हें समझ नहीं पा रहा है तो वो एक दूसरे के अनुभवों से वो जान सकें।

वास्तव में सैमिनार का वास्तविक अर्थ ही यही है कि दूर दूर से आये सहजी एक दूसरे के साथ बातों ध्यान के माध्यम से एक दूसरे में बहने वाली ऊर्जा को एक दूसरे के साथ बांट सकें एक दूसरे के यंत्र में प्रवाहित कर सकें।

क्योंकि ये देख गया है कि पूरे विश्व के सहज-सेंटर्स में उन क्षेत्रों के प्रभाव उस क्षेत्र के लोगों के पूर्व संस्कारों के अनुसार कुछ तौर तरीकों में एक विशिष्ट प्रकार की शैली का प्रभाव परिलक्षित होता है।

इसके कारण उस विशेष क्षेत्र के लोग एक ही प्रकार की सहज-कार्य-शैली से बंधे होने के अक्सर अपनी कई समस्याएं को वहीं के सेंटर्स के लोगों के अनुभवों से हल नहीं कर पाते जिसके कारण उनकी अंतर्चेतना का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

और जब वे लोग अलग अलग क्षेत्रो से आये लोगों से बातचीत करते हैं तब जाकर कहीं कहीं उनकी समस्यायों का हल "श्री माँ" की कृपा से उन्हें मिल ही जाता है।

ऐसी ही स्थिति में यदि कोई उस स्थान के सेंटर्स से सम्बंधित सहजी अन्य स्थानों से आये सहजी से अपनी कुछ ध्यान से सम्बंधित समस्याओं के साथ साथ और भी ज्यादा गहनता पाने के लिए कुछ पूछ लें।

तो उस स्थान विशेष के सेंटर के पदाधिकारी/पुराने सहजी को उनके सेंटर के सहजी के द्वारा अन्य स्थान से आये सहजी के पूछना बहुत अखर जाता है।

और यदि उनके सेंटर के सहजी के द्वारा दूसरे स्थान के सहजी के द्वारा बताई गई बात अपना ली जाती है तो फिर तो बस उस सेंटर के उक्त सहजी की खैर नहीं।

बात बात पर उस सेंटर के पदाधिकारी/पुराने सहजी के द्वारा उनको नीचा दिखाने का प्रयास किया जाएगा। उनकी अनेको गलतियां खोजी जाएंगी, उनके ध्यान के तरीकों के बारे में उस स्थान के सेंटर के सहजियों के बीच अनर्गल फैलाया जाएगा।

कोशिश की जाएगी कि उस सहजी से, जिसने बाहरी सहजी के बताए अनुभव को अपनाया है, अन्य सहजियों से काट दिया जाए ताकि वो अकेला पड़ जाए, कोई उससे ठीक प्रकार से बात कर सके।

यंहा तक कि उस बाहर के सहजी के बारे में भी उल्टी सीधी अफगाहें बाते फैलाने का प्रयास किया जाएगा जिससे उस क्षेत्र के अन्य सहजी उस बाहर वाले सहजी के ध्यान के अनुभवों तरीकों से प्रभावित होकर लाभान्वित हो जाएं।

ऐसे महान तथाकथित सहज के पदाधिकारियों/पुराने सहजियों को ऐसा प्रतीत होने लगता है मानो उस बाहर वाले सहजी ने उनका सहज-साम्राज्य खंडित कर दिया हो, उनकी समस्त सम्पत्ति लूट ली हो।

कई बार तो देखकर बड़ी हंसी आती है कि ऐसे पदाधिकारी/सहजी कुछ समय की प्रतीक्षा भी नहीं कर पाते। सामने की सामने ही वो तुरंत ही उस पूछने वाले सहजी के पास किसी किसी बहाने से या तो स्वम् आएंगे।

या किसी अपने किसी जानकार को भेजकर उनके कान में कुछ फुसफुसाते हुए उस बाहर वाले सहजी के बारे में झूठी बाते बोल/बुलवा कर चले जाते हैं ताकि पूछने वाला सहजी डर कर उनसे दूर हो जाये।

बड़ा ही आश्चर्य होता है ये देखकर कि ऐसी उच्च शख्सियतें एक तरफ तो उस बाहरी सहजी के व्यक्तिगत ध्यान अनुभवों को अपनी निम्न सोचों ईर्ष्या के कारण सभी सहजियों के बीच गिराने में प्रयास रत रहते हैं और वहीं दूसरी ओर स्वम् भी भी वही कार्य कर रहें हैं।

यानि सभी सहजियों पर केवल और केवल अपनी बातें ही लाद रहें होते है, वे प्रयास कर रहे होते हैं कि सभी सहजी उनके मार्गदर्शन दिशानिर्देशों का ही पालन करें और सदा उनकी बात ही मानें।

उनका आचरण एक तानाशाह राजा की तरह होता है जैसे एक राजा अपनी प्रजा पर तरह तरह के अव्यवहारिक अनुचित नियम लाद कर उनकी चेतना उनकी नैसर्गिक स्वतंत्रता हो हानि पहुंचाता है।

यानि कि ऐसे तथाकथित 'सहज-अधिकारी' अपने दोहरे आचरण को हर हाल में उचित ठहराने के प्रयास में संलग्न रहते हैं और अपनी 'भ्रामक' सहज-सत्ता को बनाये रखने के लिये लालायित हैं।

ऐसे सहज-विरोधी अधिकारियों/सहजियों के नकारात्मक प्रकृति विरोधी आचरण कार्यों को देखकर हृदय में उनके लिए बड़ी करुणामयी पीड़ा महसूस होती है।

क्योंकि ऐसे दिग्भ्रमित सहजी अपनी चेतना जागृति का इतना अहित कर रहे होते हैं कि उनकी इन निम्न प्रकार की गतिविधियों के कारण वे अनेको प्रकार के नरकों को इसी जन्म में भोगने जा रहे हैं।

जिन देवी देवताओं की पूजा अर्चना की आड़ में वो सहजियों की चेतना पर शासन करने के स्वप्न देख रहें हैं उन्ही देवी देवताओं के जरिये उनकी दुर्गति होने जा रही है।

क्योंकि "श्री माँ" ने एक दूसरे सहजी की चेतना की गहनता के द्वारा प्राप्त अनुभव 'ऊर्जा' के माध्यम से ही एक दूसरे के आध्यात्मिक उत्थान की व्यवस्था की है।

यदि हम अपने स्वम् के "श्री माँ" के "श्री चरणों" में प्रथम बार आने की स्मृति को दोहराएं तो पायेंगे की हममे से अधिकतर लोग किसी किसी सहजी के माध्यम से ही "श्री माँ" की शरण में आये हैं।

तो फिर चिंतन करने योग्य बात यह है कि यदि सहज में हम किसी किसी के माध्यम से आते हैं तो फिर ध्यान में विकसित होने के लिए "श्री माँ" के द्वारा प्रदत्त माध्यम में क्या खराबी है।

ध्यान में उन्नत होने के लिए भी तो यही व्यवस्था "श्री माँ" ने रख छोड़ी है।और उससे भी बड़ी बात ये है कि हम स्वम् ये अपने भीतर ये आंकलन करके देखें कि किसी सहजी के द्वारा बांटे गए मनुभाव तरीके से क्या हमारे यंत्र में बहने वाली ऊर्जा में वृद्धि हो रही है ?

क्या उस तरीके को अपनाकर हमारे यंत्र के विकारों में कुछ कमी आई है?

क्या किसी सहजी के द्वारा शेयर की गई ध्यान की विधियों से हमारा मन शांत रहने लगा है ?

किसी अपने सहज यात्री के ध्यान अनुभवों से क्या हमारी चेतना प्रफुल्लित विकसित हो रही है ?

किसी अन्य सहजी के साथ कुछ देर ध्यानस्थ होने पर क्या हमें विचार रहित गहन समाधि का आनंद प्राप्त हो रहा है ?

किसी सहजी के सानिग्ध्यय में रहने से हमारे मन के भीतर की निराशा कुछ कम होने लगी है ?

क्या किसी सहजी की बातें हमारे हृदय को आडोलित कर हमें जीने की नए नए आयाम दिखा रहीं है ?

क्या किसी सहजी के अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित सुझावों पर चल कर हमारे अंधकारयुक्त जीवन में प्रकाश की किरणें बिखर रहीं हैं ?

क्या किसी सहजी के साथ का प्रभाव हमें आंतरिक मन में प्रसन्नता उल्लास भर रहा है ?

क्या किसी सहजी के कुछ समय के प्रवास से हमारे घर की ऊर्जा में कुछ बढ़ोतरी होने से घर का वातावरण साकारत्मक महसूस हो रहा है ?

क्या उक्त सहजी के बारे में विचार करने मात्र से हमारे हृदय में प्रेम प्रस्फुटित होने का अनुभव होता है ?

क्या किसी सहजी के बारे में चर्चा करने मात्र से हमारा हृदय गद गद होता है ?

क्या किसी सहजी की बातों को याद करने मात्र से हमारे हृदय में आत्मविश्वास की लहर फूटती प्रतीत होती है ?

अपने सांसारिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितितयों विपरीत दौर में उसके अपने जीवन में होने का एहसास भीतर में शक्ति प्रदान करता है ?

क्या किसी सहजी के बारे में स्मरण करने मात्र से हमारे हृदय हमारे सहस्त्रार में 'ऊर्जा' का संचार बढ़ रहा है?

यदि इनमें से कुछ अथवा समस्त साकारात्मक लक्षण को हम महसूस कर पा रहे हैं। तो निश्चित रूप से वह बाहर का सहजी हमारे आत्मिक आध्यात्मिक उत्थान के लिए स्वम् "श्री माँ" के द्वारा भेजा गया है अथवा मिलवाया गया है।

अतः निश्चिंत होकर समस्त प्रकार की शंकाओं का त्याग कर आनंद के साथ उस "श्री माँ" के 'बालक' की नजदीकी के अवसर का भरपूर लाभ उठाने के साथ साथ अपनी सहज यात्रा ध्यान धारणा को और भी परिष्कृत करते चलें।

क्योंकि वह बाहरी सहजी "श्री माँ" ने कुछ सुनिश्चित काल के लिए ही आप सभी को आप सभी की चेतना की आवश्यकतानुसार ही उपलब्ध कराया है।

कुछ समय बाद उक्त सहजी को किन्ही अन्य सहजियों के नजदीक उनकी आंतरिक जरूरतों को पूर्ण करने के लिए भेज दिया जाएगा।

ऐसे सहजी 'निरभेद', निर्लिप्त निर्विकार होते हैं, उनके हृदय में नकारात्मक से नकारात्मक लोगों की चेतना के लिए किसी भी प्रकार की दुर्भावना दुर्विचार नहीं होते।और ही वे सहजी किसी से घृणा द्वेष भाव ही रखते हैं।

यदि वो ये देखते भी हैं कि कोई सहज पदाधिकारी/सहजी उनसे कुछ ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भेदभाव दुर्भावना भी रखता है तब भी ऐसे प्रेममयी सहजी उनके प्रति भी कोई बैरभाव नहीं रखते वरन वो तो उनके लिए भी अपने हृदय में करुणा प्रेम ही रखते है।

क्योंकि वे जानते हैं कि उक्त पदाधिकारी/सहजी अभी अंधकार अज्ञानता से घिरा है, और अभी वह "श्री महा माया" के जाल में उलझा हुआ है।

वो यह भी जानते हैं कि "श्री महामाया" उनको कुछ समय बाद किसी किसी भारी विपत्ति में फंसा कर फिर उससे निकलने के मार्ग सुझाकर"स्वम्" ही ठीक कर लेंगी।

जो भी कोई सहजी जाने अनजाने में 'मानवता', 'प्रेम', 'प्रकृति' "परमात्मा" के विरोध में चलने लगता है तो " श्री महा माया" "स्वम्" उस सहजी को अपनी देखरेख में ले लेती हैं।

अतः यदि हम देखते हैं कि कोई तथाकथित सहज-पदाधिकारी/पुराना सहजी आपकी चेतना पर अपना शासन चलाने का प्रयास कर रहा है तो बिल्कुल भी दुखी पीड़ित हों।

बल्कि उक्त नकारात्मकता से 'संक्रमित' पदाधिकारी/पुराने सहजी से कुछ समय के लिए बाहरी रूप से कुछ दूरी बना लें।

किन्तु उनके मध्य हृदय में गहन ध्यानस्थ अवस्था में अपने हृदय से प्रेम करुणा के साथ प्रत्येक ध्यान की बैठक में 'ऊर्जा' भी अवश्य प्रवाहित करें।

अन्यथा उस सहज-पदाधिकारी/पुराने सहजी को निकट भविष्य में बेहद कष्ट उठाने पड़ेंगे।

और आप ही उस सहजी को भयानक पीड़ाओं से घिरा देखकर उसके कष्टों के निराकरण के लिए "श्री माँ" से प्रार्थना कर रहे होंगे।"

--------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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