Wednesday, July 21, 2010

अनुभूति--4 "रूहानी चाहत" (दर्द कुण्डलिनी का)

अनुभूति-4 "रूहानी चाहत" 26.03.०४



न दिन होता है, न रात होती है,
सिर्फ तेरे तस्सवुर में बात होती है,
हर दम मेरे दिल में सिर्फ इक बात होती है,
हर पल तेरे साथ रहने की जुस्तजू होती है,
जिस्म के जर्रे जर्रे से बहती रूह ये कहती है,
ऐ प्यार के राही, जरा ठहर जरा देख,
यही वो मंजिल है,यही वो हकीकत ,यही तो इबादत होती है,
ऐ दिले नादाँ,जरा होश में आ,यही वो रूहानी लौ है,
जो हर दम तेरे दिल में जला करती है,
यही लौ जल जल के खुद,रौशनी ये तुझे देती है,
भला इसकी भी मिसाल कहाँ होती है,
हर घडी ख़ुशी दे दे के तुझे, दिल ही दिल में सदा ये रोती है,
अरे नादाँ ,पहचान जरा इसके दुःख को, पहचान इसकी फितरत को, पहचान इस हकीकत को,
यही वो शय है, जो हर एक धड़कन में रहा करती है,
न चाहती है ये सोना, न चाहती ये चांदी , आबाद रहे ये दुनिया, रौशन रहे ये जिगर,
कभी उठती है तो कभी गिरती है, हर वक्त इसके दिल में इक टीस सी उठती है,
खुश रहो, मुस्कराते रहो, दिल से यही दुआ देती है।
-----------------नारायण
उपरोक्त भाव सदा श्री माता जी की याद में डूबे रहने की इस्थिथि को दर्शाते हैं।

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