Monday, July 12, 2010

अनुभूति---1 "कौन हो तुम"

अनुभूति-1 "कौन हो तुम" 06.07.२०००

चमन से चलने वाली फूलों की महक सी बयार हो तुम,
दबे दबे ,होटों से फूटने वाले गीतों की मीठी सुरीली तान हो तुन,

निर्जीव चेहरों की रंगत बदल,नूरानी करने वाला नूर हो तुम,
डूबते हुए दिलों को सहारा देकर ऊबारने वाली लहर हो तुम,

बरसात के मौसम में मिटटी से उठने वाली सौंधी सौंधी महक हो तुम,
इन बेगानों से भरे संसार में अपनेपन इक अहसास हो तुम,

अन्धेरो में डूबे हुए जीवनों को रौशनी देने वाली किरण हो तुम,
इस जिन्दगी के कठिन सफ़र में चलने वालों का मार्ग दर्शन हो तुम,

इस सफ़र में थक बेठे ,पाथिकों  के लिए ठंडी छावं हो तुम,
इन टूटते झूठे रिश्तों के बीच बनाती इक गहरा रिश्ता हो तुम,

अपनों से टूटे समाज से सताए ,जीवन से निराश लोगों की आस हो तुम,
हजारों जीवन रुपी नदियों को समाने वाला सागर हो तुम,

हजारों लोगों के बुझे दिलों को प्रफुल्लित करने वाली मुस्कान हो तुम,
निराकार परमात्मा के साकार स्वरुप का जीवंत प्रमाण हो तुम,

इस अज्ञान के अंधेरों में भटकने वालों का प्रेममई ज्ञान हो तुम,

हे माँ मैं समझ नहीं पाता,मुझे शब्द नहीं आता,
किस भाव से मैं बताऊ, मैं वो समझ कहाँ से लाऊ,

जो इस विशालता को,इस प्रेम के सागर को,
इस युगों युगों से छुपे गहरे ज्ञान को, इस आत्मा के प्रकाश के स्रोत को,

इस जीवन को चलाने वाली सांसों के उदगम,
हृदयों को चलाने वाले स्पंदन को, कैसे समेटूं चाँद शब्दों में,

शायद मैं कभी भी न खोज पाऊं कि कौन हो तुम,

पर ऐसा लगता है कि शायद मेरे लिए ,मेरे सूने उपवन की बहार हो तुम,
मेरी आत्मा की गहरी पहचान हो तुम,

मेरे हृदय की खोई आवाज हो तुम, इस जीवन को चलाने वाली इक साँस हो तुम,

मेरे धड़कने वाले हृदय की धड़कन हो तुम,
मेरा स्वम का अपना अस्तित्व हो तुम,मेरे इस जीवन के सफ़र की प्रेरणा हो तुम,

मेरे इस जीवन में परमात्मा को पाने की प्रबल इच्छा हो तुम,
हर पल हृदय में उठने वाला भाव हो तुम,

इतना सब कुछ कहते हुए भी,
हृदय के कोने में उठने वाली फुसफुसाहट यह कहती है,
कि कौन हो तुम, तो मैं उसे बताता हूँ कि परमात्मा का दिया हुआ इक प्राण हो तुम।

-------------नारायण

"Jai Shree Mata Ji"



"भावांजलि"

उपरोक्त पंक्तियाँ मेरे "श्री माँ" से जुड़ने के बाद की प्रथ्मानुभूति है। मार्च २००० में मुझे श्री माँ ने अपने " श्री चरनन" में स्थान दिया। जिस शखसिअत के माध्यम से मै " श्री माँ" से जुड़ा था, 6 जुलाई को उनका जन्मदिवस होता है;अत: उस शुभ अवसर पर मेरे हृदय से ये धरा फूट पड़ी। इससे पहले मेरा किसी भी धर्म या मत में कोई विश्वास नहीं था,मैं ये सोचता था कि यह सब पाखंड होता है, ये सब पैसा कमाने के व्यापार हैं,मेरे लिए भगवान का मतलब नदी, नाले, पहाड़ ,समुंदर , आकाश एवं प्रकृति होता था। वास्तव में मुझ पर पहला प्रभाव उस व्यक्तित्व का पड़ा था जिस के माध्यम से मैं माँ से जुड़ा था, उसके निश्छल एवं निस्वार्थ प्रेम भाव ही मुझे सहज में लाये थे, व
"श्री माता जी" का विलक्षण स्वरुप जैसे मेरे हृदय में कहीं धंस गया था, न जाने उस स्वरुप में क्या था जो मुझे अपनी ओर आकर्षित करता रहता था। हालाँकि लगभग डेड़ माह तक कोई भी कहीं भी चैतन्य मेहसूस नहीं हुआ था,फिर भी न जाने कैसा विश्वास था। ये सब" श्री माँ" कि कृपा का ही परिणाम है जो कि आज "माँ " का ही दिया हुआ आप सब तक पहुंचा पा रहा हूँ। मै कभी भी कोई कवि या लेखक नहीं रहा हूँ, और न ही मेरी कोई रूचि ही रही है। ये सब तो केवल एक अवलोकन है ,जो सहज यात्रा के दौरान घटित हुआ है। ढेर सारे सहजियों को नजदीक से देखने का अवसर मिला,विभिन्न प्रकार कि अवस्थायों से सबको व् अपने को गुजरता देखा, घंटों आत्मविश्लेषण कर कर के तथ्यों को समझा व् संकलित किया। जो भी कुछ मेरे से करवाया गया सभी कुछ "श्री माँ" कि प्रेरणा वश ही हुआ है। जो भी कुछ इस ब्लाग में आप सबको नजर आयेगा वह सभी कुछ 'श्री माँ" के" श्री चरणों" में समर्पित है। कुछ अनुभव काव्य के रूप में "अनुभूति" के नाम से संकलित हैं। आनंद उठाइएगा।

"ए" माँ आदि शक्ति" आपके" श्री चरणों"में नतमस्तक हैं हम,
भरते हैं सारे संसार को परिवर्तित करने का हम दम,
ताकि रहे न संसार में कोई भी दुःख व् गम,
सारी मानव जाती बन जाये आत्मा सम। "

----नारायण

" जय श्री माता जी "
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