Wednesday, July 21, 2010

अनुभूति--6 "आत्मिक उद्द्येश्य"

अनुभूति-6 "आत्मिक उद्देश्य" 29।12।05


न खोना है न पाना है, सभी कुछ यहीं रह जाना है,
फिर क्यूँ यह समय गंवाना है, फिर क्यूँ यह समय गंवाना है, बन बच्चा श्री माँ का अपनी,
सभी को हृदय में समाना है, ध्येय अपना यही बनान है,
युगों युगों का राज ये गहरा, हमने सभी को बताना है,
सभी मानवों की सोई माँ कुण्डलिनी को, हमें हर रोज जगाना है,
स्वम बैठ" श्री चरणों" में" श्री माँ "के, औरों को भी बैठाना है,
नष्ट कर प्रभाव, समस्त शटरिपुओं का अपने, आत्म ज्ञान को पाना है,
बन कर गुरु हमें स्वम का , सद मार्ग पर सभी को लाना है,
पाकर प्रेम हृदय में श्री माँ का, मनोवृतियों से परे जाना है,
सभी कुछ मनोवांछित नहीं होता है, यही मन को समझाना है,
जो होता, होता इच्छा से श्री माँ की, नित्य हृदय में बसाना है,
दूर कर कटु वचनों को अपने, वाणी में माधुर्य लाना है,
रहकर ध्यान में हर पल हमें, सोई शक्तियों को जगाना है,
जगाकर सोई शक्तियों को अपनी, हमें ऊपर उठ जाना है,
उठकर स्वम पावों पर अपने, और सभी को भी उठाना है,
समर्पित कर अस्तित्व को अपने, हमें स्वम को पाना है,
होकर स्वम आत्मा स्वरुप, सद चित्तानंद कहलाना है,
उतर कर खरे आकान्छाओं पर" श्री माँ" की, इक सुन्दर जहाँ बनाना है,
पूरा कर स्वप्न" श्री माँ "का, निज धाम को जाना है,
होकर आधीन" श्री माँ" के अपनी, साथ श्री माँ के हर मुकाम पर जाना है,
समझ उद्देश्य आत्मा का अपनी, सार्थक इसे बनाना है,
न खोना है न पाना है, सभी कुछ यहीं रह जाना है,
फिर क्यूँ यह समय गंवाना है, ध्येय अपना यही बनाना है,
इक मीठी सी अनुभूति लेकर, हृदय में" श्री माँ" के बस जाना है,
-----------------नारायण

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