Monday, April 3, 2017

"Impulses"--354--"सहज-वैमनस्यता"

"सहज-वैमनस्यता" 

"कुछ सहज साथियों के साथ एक बड़ा ही दुखद व् पीड़ादायक पहलू जुड़ा हुआ है, और वो है कुछ सहजियों के द्वारा किसी अन्य सहजी के ध्यान-अनुभवों, जागृति व् ध्यान के कार्यों व् तौर तरीकों को केवल अपने मानसिक ज्ञान व् समझ के आधार पर गलत ठहराना। 

बहुत ही आश्चर्य होता है कि सभी "श्री माँ" के द्वारा 'पुनर्जीवित' किये गए हैं परंतु फिर भी कोई कैसे एक दूसरे के सहज से सम्बंधित कार्यों को गलत ठहरा सकता है।

ये बात और है कि सभी सहजी अपनी अपनी चेतना व् जाग्रति की अवस्था के कारण ध्यान कराने व् आत्मसाक्षात्कार देने के तरीको में कुछ कुछ भिन्नता हो सकती है जो कि बिलकुल स्वाभिक है। 

परंतु अज्ञानतावश किसी के द्वारा दूसरे को यह कह देना कि अमुक सहजी ने गलत तरीके से जागृति दी या ध्यान कराया, बिलकुल ही गलत है।

क्या अन्यों को गलत कहने वाले सहजी ने "श्री माँ" का दिया सम्पूर्ण ज्ञान अपने भीतर आत्मसात कर लिया है ?

क्या "श्री माँ" के द्वारा बताई गई समस्त स्थितियों व् बातों को अपने यंत्र में वह महसूस कर चुका है ?

क्या वह 'तथाकथित ज्ञानी' पूर्ण मुक्त अवस्था को प्राप्त कर चुका है ? यदि नहीं, तो उसको किसी अन्य को गलत कहने का कोई अधिकार गई नहीं है।

हम सभी सहज यात्री हैं जो सहज योग रूपी कारवां में "श्री माँ" के द्वारा ले जाए जा रहे हैं, किन्तु एक सामूहिकता होने पर भी हम सभी के आंतरिक व् व्यक्तिगत अनुभव एक दूसरे से कुछ कुछ भिन्न अवश्य हैं, और इसी भिन्नता के कारण हम सभी के तौर तरीके भी भिन्न हैं। 

दूसरे के तरीकों को गलत कहने वाले ये भूल जाते हैं कि 'कुण्डलिनी' तो केवल "माँ आदि शक्ति" की शक्ति से ही उठ सकती है और ध्यान में सहस्त्रार पर चैतन्य भी "माँ आदि शक्ति" की शक्ति से ही प्राप्त होता है।

यदि किसी मनुष्य को किसी सहजी के यंत्र के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है या किसी सहजी के माध्यम से कराये जाने वाले ध्यान के द्वारा किसी अन्य सहजी को निर्विचारिता व् आनंद प्राप्त हो रहा है तो यकीनन जागृति व् ध्यान के तरीके ठीक ही रहे होंगे।क्योंकि ये दोनों ही कार्य मनुष्य की क्षमता से परे हैं।

ये अक्सर देखा गया है कि यदि कोई अच्छा सहजी "श्री माँ" की इच्छा से स्वतंत्र होकर अच्छे से सहज का कार्य कर रहा होता है तो सहज संस्था में पदों पर आसीन कुछ सहजी व् कोर्डिनेटर ईर्ष्या से ग्रसित होकर उस अच्छे सहजी के बारे में भ्रामक टिप्पड़ियां करना प्रारम्भ कर देते हैं।

यहाँ तक कि सहज सेंटर में होने वाले साप्ताहिक सामूहिक ध्यान में उस सहजी के बारे में माइक पर झूठी व् निम्न स्तर की बाते भी फैलाना प्रारम्भ कर देते हैं। जैसे कि "श्री माता जी" ने उन्हें इस प्रकार अनर्गल बाते फैलाने व् शासन करने के लिए अधिकार दे रखें हों। 

और इस प्रकार के पदाधिकारियों के तौर तरीकों से प्रभावित कुछ सहजी भी यही कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं और दूसरों की गलतियां बता बता कर सभी पर शासन करने की कोशिश करने लगते हैं

ऐसे सहजी ये भी भूल जाते हैं कि उनको "श्री माँ" सहज में किस लिए लायीं थीं और वो उस समय किस दशा में थे। 

इस प्रकार के सहजियों का केवल एक ही कार्य होता है और वो है अन्य सहजियों के कार्यों की नकारात्मक विवेचना कर कर के उनकी कमियां निकालना, उनके चक्र पकड़ पकड़ कर सारे सहजियों में बताना और उनके 'निजी जीवन' की बातों को सारे सहजियों में प्रचारित करना।

ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वे "परमात्मा" के द्वारा इसी कार्य के लिए नियुक्त किये गए हैं। जबकि उनको स्वम् अपनी स्थिति का आभास तक नहीं होता है कि वो स्वम् क्या कर रहे हैं।उनके स्वम् की चेतना कौन सी स्थिति में जा चुकी है, उनके स्वम् के चक्र क्या बताना चाह रहे हैं।


हम सभी का एक ही मुख्य कार्य है और वो है ध्यान में निरंतर उन्नत होते हुए "श्री माता जी" के प्रेममयी ज्ञान को सारे संसार में फैलाना ताकि सम्पूर्ण मानव जाती उत्क्रांति की ओर अग्रसर हो अपने मोक्ष को प्राप्त कर सके और सुख-शांति के साथ इस धरा पर अपना जीवन यापन करते हुए अपने जन्म को सार्थक कर सके।"

-------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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