Wednesday, June 28, 2017

"Impulses"--381--"सर्व-कल्याण-सूत्र "

"सर्व-कल्याण-सूत्र "


"अक्सर आम साधारण लोग अपने लाभ शांति के लिए तरह-तरह के अनुष्ठान, पूजा, हवन,मंत्रो-चारण, दान, ध्यान-धारणा इत्यादि करते है।  सहज योगी "श्री माँ" के द्वारा बताई गई सहज क्रियाएं, पूजा, हवन इत्यादि करके अपने को लाभान्वित करना चाहते हैं सदा "श्री माँ" से उम्मीद करते हैं कि "श्री माँ" हर स्तर पर उनका कल्याण करें। फिर भी अक्सर उसकी उम्मीद पूरी नहीं होती दिखाई देती, क्या कारण है ?

मेरे अनुभव से, यदि किसी भी व्यक्ति ने चाहे वो सहज योगी हो या हो किसी भी इंसान को सच्चे हृदय से बिना अपने किसी लाभ या स्वार्थ के या बिना अपने मान-अपमान की चिंता किये। उसे आंतरिक रूप से उठाया हो तो उसके हृदय से निकलने वाली सुन्दर सुन्दर दुआओं से युक्त भावनाए उसका कल्याण ही करती है। मेरी चेतना के अनुसार "इश्वर" अपने ऊपर कभी भी पक्षपात का आरोप नहीं लगवाते।

किसी के कल्याण को भी उन्होंने मनुष्य के द्वारा कमाई गई सद-भावनाओं व् दुआओं पर ही छोड़ दिया है। तो जितना हो सके निस्वार्थ दुआओं की कमाई की जाए। और दुआओं को कमाने का सर्वोत्तम तरीका है सबको बिना किसी भेद-भाव व् अहंभाव से ग्रसित हुए निरंतर आत्मसाक्षात्कार देते जाना। व् अन्य सहाजियों के ध्यान में उन्नत होने में अपनी सामर्थ्य व् अनुभवानुसार प्रेम-भाव व् खुले हृदए से मदद करना।

क्योंकि अनेकों जन्मों से मानव देह में कैद हुयी कुण्डलनी असंख्य देव-गण जब हमारे यंत्र के माध्यम से मुक्त हो जाते हैं तो हमें आजीवन आशीर्वादित ही करते रहते हैं। और इसके विपरीत यदि कोई सहजी अपने 'अहम' को पोषित करने के लिए व् अपने को सबकी निगाहों में सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए सहज-कार्य करता है।

या किसी भी प्रकार की राजनीति से ग्रसित होकर अन्य सहाजियों को नीचा दिखाने के लिए उसके हृदए को पीड़ा पहुंचाता है, प्रताड़ित करता है। या सहाजियों पर दोष-भाव भाव आरोपित कर उन पर शासन करना चाहता है। तो ऐसे निम्न-चेतना-स्तर वाले सहजी से उसके रूद्र अत्यन्त रुष्ट हो जाते हैं और उसको भारी विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।

अतः हम सभी को अपने नकारात्मक मनो-भावों के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक रहना पड़ेगा। अन्यथा पतन के गर्त में गिरने में बिलकुल भी समय नहीं लगेगा चाहे फिर कितना भी अच्छा सहज-कार्य पूर्व में क्यों किया हो या वर्तमान में कर रहे हों। क्योंकि एक 'निर्दोष व् सच्चे' सहजी के हृदए से निकली एक "आह" ही किसी भी प्रतिष्ठित सहजी को रसातल में मिलाने के लिए काफी है।"

------------------------------------------Narayan
"Jai Shree  Mata Ji"

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