Thursday, June 1, 2017

"Impulses'--374--""अपरिवर्तनीय कर्मफल"

"अपरिवर्तनीय कर्मफल"

"हममें से बहुत से साधक इसीलिए ध्यान करते हैं कि ध्यान के माध्यम से अर्जित शक्तियों के द्वारा वे अपने नकारात्मक प्रारब्ध को परिवर्तित कर सकें। और नकारात्मक प्रारब्ध की प्रतिक्रियाओं के परिणाम स्वरूप वर्तमान जीवन में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं, कठिनाइयों, कष्टों व् पीड़ाओं के संताप से बच् सकें।

मेरी चेतना के अनुसार वास्तव में यह असंभव है, क्योंकि जैसे पिछली कक्षा की परीक्षा का परिणाम आने के बाद बदला नहीं जा सकता, इसी प्रकार से प्रारब्ध का परिणाम भी नहीं बदला जा सकता।

हाँ, यदि अच्छे से पढाई की जाए तो वर्तमान कक्षा की परीक्षा में अच्छे नम्बर लाये जा सकते हैं जिससे पिछली कक्षा की परीक्षा में कम नंबर लाने का दुःख समाप्त किया जा सकता है।

यानि इस वर्तमान जीवन में हम ठीक प्रकार से ध्यानस्थ रह कर पूर्ण समर्पित भाव में अन्य लोगों को 'जागृति' देने व् 'चेतना' को बढ़ाने के कार्यों में निरंतर लगे रहकर अपने भौतिक कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा व् ईमानदारी से पालन करते जाएँ।

तो निश्चित रूप से प्रारब्ध के परिणाम स्वरूप मिलने वाली पीड़ाओं व् कष्टों के एहसास से मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि वर्तमान की उपलब्धियां पूर्व जीवन से प्राप्त कमियों के एहसास को पूर्णतया नष्ट कर देती हैं। जिस प्रकार सुन्दर सुन्दर आभूषण व् वस्त्र कुरूप से कुरूप शरीर को ढक कर उसके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ा देते हैं।

उसी प्रकार ध्यान के माध्यम से जब हम "परमपिता" से एकाकारिता का आनंद उठाने लगते हैं तो हमारा वर्तमान जीवन पुष्प सम महकने लगता है जो स्वम् को भी आनंदित रखता है और अन्य लोगों को भी लाभान्वित करता है। अतः किसी भी प्रकार के पूर्व या वर्तमान के दुःख का स्थान हमारे जीवन में शेष नहीं रह जाता।"

--------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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