Thursday, June 29, 2017

"Impulses"--382--"अंतस-शोधिकरण"

"अंतस-शोधिकरण" 

"श्री माँ" हमारे 'अंतस' में ढेर सारी शक्तियां प्रविष्ट कराती रहती हैं किन्तु हमारा अंतस बहुत सारी निर्थक सांसारिक इच्छाओं से भरा होता है। जिस कारण वो शक्तियां हमारे भीतर ठहर नहीं पाती, पुन: बाहर निकल कर व्यर्थ हो जाती हैं। जैसे एक जल से भरे पात्र को पुनः दूध से भरने की चेष्टा करें तो सारा दूध बाहर की ओर बह कर नष्ट हो जाएगा।

यदि हम चाहते हैं कि वो समस्त शक्तियां हमारे पास रहे तो सर्वप्रथम हमें अपने अन्तस् को खाली करना होगा। और अंतस को खाली करने का एक अत्यंत सुन्दर व् सरल मॉर्ग है, और वो है, हर क्षण हर घडी अपनी चेतना में "श्री माँ" को महसूस करना।

"माँ" को निरंतर महसूस करते हुए लगातार अपने सहस्त्रार से "माँ आदि शक्ति" की शक्ति को अपने मध्य हृदय में शोषित करते जाना।
ऐसा निरंतर करने से हमारे मन में एकत्रित अनावश्यक स्मृतियों के अवशेष धीरे धीरे समाप्त होते चले जाएंगे जिनके कारण इन अवशेषों से उठने वाली विभिन्न इच्छा रूपी दुर्गन्ध भी नष्ट हो जायेगी।


जिस प्रकार बर्फ के दुकड़ों से भरे ड्रम में लगातार जल डालते रहने से बर्फ के टुकड़े जल में घुल कर समाप्त हो जाते हैं और अंततः उनके जल का तापमान भी डाले गए जल के तापमान के अनुरूप हो जाता है"

---------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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