Tuesday, June 14, 2022

"Impulses"--611--'मुख-डाइपर'

    "मुख-डाइपर" 


"पिछले एक वर्ष से एक 'तथाकथित महामारी' के नाम पर वैश्विक स्तर पर हर मानव को अपने चेहरे पर 'मुख-डाइपर' लगाने के लिए लगभग हर देश की सरकारों द्वारा बाध्य किया जा रहा है।

और हमारे देश की सरकारों का तो क्या कहना, यहां तो पांच सौ रुपये से लेकर दो हजार तक का चालान कर हमारे देश के नागरिकों को जबरन लूटा जा रहा है।

क्या हम जानते हैं कि आज तक किसी भी वैज्ञानिक ने इस 'मुख-आवरण' के बारे में यह पुष्टि नहीं की है कि यह किसी भी प्रकार के 'विषाणु' को रोकने में सक्षम है।

क्योंकि विश्व के किसी भी बढ़िया से बढ़िया 'मुख-आवरण' के छिद्रों का साइज 250 से 300 नैनो मीटर का होता है और इस 'तथाकथित विषाणु' का साइज 50 से 150 नैनो मीटर तक का बताया गया है।

तो जरा चिंतन कीजिये कि ऐसी स्थिति में 'इसका संक्रमण' 'इस आवरण' से कैसे रुक सकता है ?

यहां तक कि हमारी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइड लाइन के मुताबिक किसी भी स्वस्थ मानव के लिए इसके प्रयोग की आवश्यकता तक नहीं है।

तो फिर आखिर क्यों कर यह आवरण हम सब पर थोपा जा रहा है ?

और तो और भारत के एक उच्च न्यायालय के जज ने तो यह तक आदेश दे दिया कि बन्द कार के भीतर अकेले कार चालक को भी यह आवरण लगाना होगा क्योंकि उन महान विभूति ने तो बन्द कार को भी सार्वजनिक स्थल बता दिया।

यह सब देख कर अत्यंत हैरानी होती है कि हमारे देश की वर्तमान सत्ता की नीतियों जरखरीद मीडिया के कारण हमारे देश के अच्छे पढ़े लिखे विद्वान लोगों की विवेकशीलता का इतना ह्रास हो चुका है।

कि हमारे देश के अधिकतर लोग पूर्णतया अवैज्ञानिक सोच का शिकार हो कर हर समय इस कदर भयभीत रहने लगे हैं कि ये लोग नित नई भ्रांतियों का शिकार हो रहे हैं अपने आस पास के वातावरण में भी भ्रम भय का ही प्रसार कर रहे हैं।

यही नहीं अपने आप को 'सत्य के खोजी' मानने वाले यानि "श्री माँ" के बताए मार्ग का अनुसरण करने वाले अनेको लोग भी अनेको प्रकार की भ्रांतियों से प्रभावित हो कर भ्रम फैलाने वालों का ही साथ दे रहे हैं।

इतना सब होते हुए भी अब कई देशों के लोग इस आवरण इस तथाकथित 'महामारी' के खिलाफ सड़कों पर भारी संख्या में निकल कर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

हम तो अधिक पढ़े लिखे हैं नहीं किन्तु पिछले एक वर्ष से इस तथाकथित 'संक्रमण' के बारे में काफी अध्यन करने के पश्चात इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस 'संक्रमण' का वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं है।

बल्कि यह केवल और केवल पूर्व ऋतुजन्य संक्रमण का मात्र एक नया नामकरण ही है और जो भी लोगों को समस्याएं हो रहीं हैं अथवा उनकी मृत्यु हो रही है।

उसका सबसे बड़ा कारण इस तथाकथित संक्रमण को रोकने के लिए प्रयोग की गईं 'प्रतिबंधित दवाओं' इसके प्रसार को रोकने के लिए अपनाएं गए अधिकतर तरीकों का ही है जो कि एक वैश्विक षड्यंत्र के तहत सारी मानव जाति पर जबरन लादे गए हैं।

जिन लोगों ने भी मीडिया सरकारों के द्वारा अपनाए गए तरीकों को नहीं अपनाया है उनमें से शायद ही किसी भी मानव की मृत्यु इस तथाकथित महामारी से हुई हो अथवा वह गम्भीर रूप से बीमार ही पड़ा हो।

इसीलिए 'आवरण' को लगाने की अपील करने वाले महान नेतागण ही इसको लंबे काल तक स्वयम लगाने से परहेज करते हैं क्योंकि वे इस तथ्य को अच्छे से जानते हैं।

चुनावी रैलियों में शिरकत करने वाले हमारे ग्रह मंत्री, प्रधानमंत्री कई मुख्य मंत्रियों ने भारी जनसमुदाय के बीच होने पर भी इस आवरण का प्रयोग नहीं किया है।

वास्तव में इसके इलाज के द्वारा ही आम मानव को बीमारी की तरफ जानबूझ कर धकेला जा रहा है ताकि इससे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या निरंतर बढ़ती जाय और भय को भुनाने वाले लोगों का व्यापार निरंतर चमकता जाय।

वास्तव में हो भी यही रहा है आम आदमी गरीब से गरीब होता जा रहा है और इसके षड्यंत्र कारी प्रति मिनट के हिसाब से अमीर से अमीर हुए जा रहे हैं।

हमें तो इतना पता है कि डा राजीव दीक्षित जी ने मानव के स्वस्थ रहने के विषय में ऋषि वाग्भट्ट जी के अनुसन्धानों, अनुभवों और निर्देशों पर रिसर्च कर बताया था।

*कि किसी भी मानव शरीर में मात्र 148 किस्म की बीमारियां ही लग सकती है जिसकी 148 ही दवाइयां होती हैं। जिनमें से लगभग सभी का इलाज हमारी रसोई में ही उपलब्ध है।*

तो जरा विचारिये कि आज पूरे विश्व में 80 हजार से भी ज्यादा दवाइयां उपलब्ध हैं, ये कैसे हो गया ? इसका मतलब आप स्वयं ही विवेकशील चिंतन के द्वारा जान सकते हैं।

*एक कड़वा सच यह है कि आज के काल में कुछ तथाकथित महान लोभी लोगों के द्वारा भविष्य में प्रचलित करने वाले किसी रोग की पहले ही दवाई बना कर उसको जांचने का तरीका पहले ही सुनिश्चित कर दिया जाता है और बाद में बीमारी का नामकरण कर दिया जाता है।*

इसीलिए इस तथाकथित महामारी का नामकरण कर इसमें ज्यादा से ज्यादा पुराने प्रचलित रोगों के लक्षण डाल दिये गए हैं।

*या यूं कहें कि पुरानी ऋतुजनित बीमारियों के साथ अन्य पुरानी बीमारियों के अनेको लक्षण डाल इसे एक नए नाम से नवाज दिया गया है।ताकि किसी किसी लक्षण के कारण लगभग हर मानव इसके चंगुल में फंस ही जाय।*

हम फिर से 'आवरण' पर आते है, इसको धारण करने के विषय में हम केवल मानव जीवन को चलाने वाली एक नैसर्गिक जीवन प्रक्रिया के कुछ घटनाक्रमों पर चिंतन करेंगे।

आप सभी से एक अत्यंत साधारण सा प्रश्न है कि मानव शरीर किस प्रक्रिया के तहत जीवित रहता है ?

आप सभी निश्चित रूप से उत्तर देंगे कि हमारा शरीर श्वसन पर आश्रित है जिसके द्वारा हमारी नसिका शुद्ध वायु में से आक्सीजन ग्रहण करती है।

क्या हम जानते हैं कि हमारे शरीर को वायु में से मात्र 21% ही आक्सीजन की आवश्यकता होती है।

अब जरा कल्पना कीजिये कि यदि कोई मानव सुबह से शाम तक अपनी नाक मुख पर यह 'मुख-आवरण' लगाए रखेगा तो क्या होगा ?

क्या ऐसी दशा में वह 'शुद्ध वायु' को अपनी नसिका से ग्रहण कर पायेगा ?

निश्चित रूप से नहीं,

तो फिर वह क्या ग्रहण कर रहा होगा ?

*वह ग्रहण कर रहा होगा जिसे हमारा शरीर हर श्वसन की प्रक्रिया में बाहर निकालता है, यानि 'कार्बन डाई आक्साइड' जो कि हमारे शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है।*

तो जरा विवेकशीलता से विचार कीजिये कि इस आवरण को लगातार प्रयोग करने वाला इंसान भला स्वस्थ कैसे रह सकता है।

निश्चित रूप से उसके शरीर में आक्सीजन की मात्रा घटती चली जायेगी और एक समय आएगा जब उसको स्वाभिक रूप से सांस लेने तक में भी तकलीफ होने लगेगी।

और इस तथाकथित 'महामारी' के बताए गए लक्षणों के आधार पर उसको लगने लगेगा कि उसे इस संक्रमण का असर हो गया है।

वह बुरी तरह से घबरा जाएगा और किसी तरह भाग कर चिक्तित्सालय पहुंचेगा जहां इलाज के नाम पर उसे प्रतिबंधित दवाएं दे दी जाएंगी जो अक्सर उसको और भी बीमार कर देंगी।

फिर उसको वेंटिलेटर पर भेज दिया जाएगा जहां उसके फेफड़ों में निरंतर 95% आक्सीजन प्रेशर के साथ भेजी जाएगी।

जिसके कारण निमोनिया के घातक लक्षण प्रगट होने लगेंगे और अंततः उसको गंभीर फेफड़ों का संक्रमण हो जाएगा जो उसके शरीर की मृत्यु का कारण बन सकता है।

वेंटिलेटर से बिरले ही जीवित वापस पाते हैं किंतु अधिकतर लोग कालकवलित ही हो जाते हैं।

वास्तव में इस आवरण के अधिक इस्तेमाल से Hyper Capnia नाम की बीमारी हो जाती है जो ठीक प्रकार से इलाज होने के कारण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक बन जाती है।

इसका लिंक यहां दिया जा रहा है कृपया अच्छे से इसके लक्षणों का अध्यन करें :-

Hypercapnia (Hypercarbia): Symptoms, Causes, Treatment

https://www.webmd.com/lung/copd/hypercapnia-copd-related....

यही वह तथाकथित 'दूसरी लहर' है जिसकी चपेट में बड़ी तेजी से लोग रहे हैं और उनके शरीर में आक्सीजन की कमी होती जा रही है और ज्यादातर मरीजों में 'हाइपर कैपनिया' के लक्षण ही प्रगट हो रहे हैं।

क्योंकि जिन लोगों ने पिछले एक वर्ष से लगातार इस 'मुख-आवरण' का प्रयोग किया है उनके द्वारा ही यह दूसरी लहर उत्पन्न हो गयी है।

इस दूसरी लहर को बढ़ाने में एक तथ्य और शमिल है और वह है इस तथाकथित महामारी से बचने के लिए अपने शरीर में स्वेच्छा से दो बार ग्रहण किये जाने वाले 'विशेष द्रव्य' जिसमें लोहे को लोहे से काटने की तर्ज पर पहले से इस 'संक्रमण के अंश' ' उपस्थित रहते हैं।

जिसके कारण करोड़ों की संख्या में लोग कम से कम 14 दिनों तक संक्रमित ही रहते हैं और असावधानी अज्ञानतावश इस संक्रमण का स्वयं ही तेजी से प्रसार करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

ऐसे में यदि उनका वह तथाकथित टैस्ट कराया जाय तो वे निश्चित रूप से संक्रमित ही पाए जाएंगे।कई बार यह संक्रमण उनके भीतर एक माह से भी ज्यादा समय तक बना रहता है।

उक्त 'द्रव्य' को लेने के बाद संक्रमण की अवधि लोगों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है।

अपने अवलोकन अन्तः प्रज्ञा के अनुसार हम कह सकते हैं कि 'वह द्रव्य' ग्रहण करने के उपरांत यदि किसी को ज्वर के लक्षण आएं तो यह अच्छी बात है।

इसका मतलब यह हुआ कि उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अच्छी है जिसके कारण यह शक्ति उस 'द्रव्य' के माध्यम से ग्रहण किये गए 'संक्रमण' से संघर्ष कर उसे निष्क्रिय कर रही है और उसके द्वारा इसका संक्रमण फैल ही नहीं सकता।

इसका मतलब यह हुआ कि जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है उसे तो यह बिल्कुल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।

यदि कोई इसको लेने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला हो तो पहले उसको अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता का टैस्ट करा लेना चाहिए।

इसके विपरीत जिनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होगी उनको किसी भी प्रकार का ज्वर तो नहीं होगा किन्तु वह अच्छे से संक्रमित होकर इस 'संक्रमण' का अच्छा वाला केरियर बन जायेगा यानि अपने द्वारा अन्यों को भी लंबे काल तक संक्रमित करेगा।

इसीलिए जिन लोगों ने भी यह 'द्रव्य' ग्रहण कर लिया है और उनको ज्वर आदि नहीं हुआ है तो मेहरबानी करके कम से कम 15-20 दिन के लिए अन्य लोगों से मिलना जुलना छोड़ दें तो बड़ी मेहरबानी होगी।

इस तथाकथित 'लहर' का एक अन्य तीसरा कारक भी है और वह है इस संक्रमण को जांचने के टैस्ट, जिसको विश्व के किसी भी स्वास्थ्य संगठन ने लिखित रूप में प्रमाणित नहीं किया है।

क्योंकि इसकी प्रमाणिकता विश्वसनीयता सन्देहप्रद है किन्तु फिर भी इसी टैस्ट के माध्यम से संक्रमितों की गणना की जा रही है।

जिसके कारण इस टेस्ट के कम से कम 10% स्वस्थ लोग भी बिना बात के संक्रमितों की श्रेणी में रहे हैं और इसके षड्यंत्र को और हवा देने में सहायक ही सिद्ध हो रहे हैं।

यानि 1000 टैस्ट में से 100 लोगों को यह टैस्ट संक्रमितों की श्रेणी में डालने को मजबूर कर रहा है।

इसके विपरीत इस टैस्ट को बनाने वाले वैज्ञानिक की मृत्यु इस संक्रमण के दो वर्ष पूर्व ही हो गई थी, इसके साथ ही उसने अपने इस टैस्ट के बारे में लिख दिया था कि यह टैस्ट किसी भी तथ्य को जांचने के लिए नहीं है बल्कि रिसर्च आदि के लिए ही उपयुक्त है।

हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्री जो कि स्वयं एक प्रतिष्ठित डॉक्टर होने के साथ साथ 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' में अधिकारी के पद पर आसीन होने के वाबजूद भी इसी 'अनुपयुक्त टैस्ट' के द्वारा ही जांच करवाने पर जोर दिए जा रहे हैं।

इस संक्रमण की दूसरी लहर का चौथा कारक है 'आई सी एम आर' के प्रोटोकॉल जिसके कारण हस्पताल में होने वाली हर मृत्यु को 'इस संक्रमण' के खाते में डाले जाने की बाध्यता जिसके कारण इसके नाम पर मृतकों की संख्या में इजाफा हो रहा है।

आम हालात में हमारे देश में प्रतिदिन 25 से 30 हजार लोग पहले से ही आम बीमारियों से मरते ही रहे हैं बस अब अंतर इतना कि अब इन बीमारियों से मरने वालों को भी इस संक्रमण के नाम किया जा रहा है।

अब आप स्वयं ही अपने विवेक से इन तथ्यों पर चिंतन करते हुए निष्कर्ष निकालें कि इस संक्रमण के नाम पर क्या चल रहा है।

ऐसा क्यों किया जा रहा है इस पर डिटेल में चिंतन किसी अन्य लेख में करेंगे, अभी के लिए बस इतना ही।

यह चेतना आप सभी के लिए "परमपिता" से प्रार्थना करती है कि "वे" हर स्तर पर आपके हृदय के माध्यम से आपका मार्गदर्शन करते रहें आप सभी को दीर्धायु प्रदान करें ताकि आप सभी अपने इस अनमोल जीवन को सही मायनों में सार्थक करते हुए अपने 'चिरप्रतीक्षित' मोक्ष के अधिकारी बनें।"

-------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


20-04-2021

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