Wednesday, June 22, 2022

"Impulses"--613--"विषाणुओं" से बचने के प्राकृतिक/आध्यात्मिक उपाय"

 "विषाणुओं" से बचने के प्राकृतिक/आध्यात्मिक उपाय"


"आज हमारे देश मे चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है हर कोई अत्यंत भयभीत पीड़ित है।

प्रतिदिन लाखों लोग इसकी चपेट में रहे हैं और हजारों लोग कालकवलित भी हो रहे हैं।

यहां तक कि चिकित्सकों को भी कुछ ठीक प्रकार से समझ नहीं राह की क्या करें क्या करें और ही सरकारी तंत्र को कुछ सूझ ही रह है।

अब सवाल यह है कि ऐसे में क्या किया जाय और किस चीज से परहेज किया जाय ?

हमारे पास भी सहज-साधना से जुड़े अनेको लोगों के अनेको प्रकार के प्रश्न पिछले एक वर्ष से समय समय पर आते रहे हैं जिनकी आवृति इस विपरीत काल में काफी बढ़ गयी है।

अब हम कोई चिकित्सक,वैज्ञानिक शरीर विज्ञान पर अनुसंधान करने वाले विद्वान भी नहीं है जो अपनी पढ़ाई लिखाई चिकित्सा के आधार पर कोई सुझाव दें सकें।

हाँ, इतना अवश्य है कि"श्री माता जी निर्मला देवी" के प्रवचनों के आधार पर "उनके" द्वारा सिखाई गयी 'सहज-ध्यान-साधना' के पिछले 21 वर्षों के अभ्यास के परिणाम स्वरूप कुछ स्तर तक 'अन्तःप्रज्ञा' का जागरण निश्चित रूप से हुआ है।

जिसके परिणाम स्वरूप अपने आंतरिक प्रस्फुटन के आधार पर हम आप सभी के साथ कुछ तथ्य अवश्य साझा कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त हमने दिसंबर 2019 से अब तक इस विषय पर अनेको चिक्तित्सकों,अनुसंधान रत विद्वानों, विश्लेषकों का इसी प्रकार की विषाणु जनित व्याधियों पर कुछ अध्यन अवश्य किया है।

जिसके कारण आप सभी के समक्ष हम कुछ तथ्य अवश्य प्रस्तुत कर सकते हैं, शायद आपको इन सभी बातों से कुछ लाभ हो जाए।

किन्ही उपायों की ओर चलने से पूर्व हम सभी को इस विषाणु की प्रकृति इसके उदगम के स्थान को अच्छे से समझना होगा तभी हम इससे अपना बचाव सही रूप में कर पाएंगे।

"श्री माता जी" ने पूरे संसार को अपनी दिव्य आध्यात्मिक उपलब्धियों के द्वारा मानव जीवन के सभी सूक्ष्म सूक्ष्मतम पहलुओं से अवगत कराया है।

जिनके आधार पर लगभग पूरे विश्व में अनेको प्रकार के अनुसंधान किये जा चुके हैं जिनसे मानवता मानव जाति को हर स्तर पर विलक्षण अदभुत लाभ हुए हैं।

"उनके" द्वारा दिखाए गए मार्ग पर विश्व के लगभग 150 देशों के हर धर्म जाति के करोड़ों लोग चल कर अनेकों रूपों में लाभान्वित हो रहे हैं।

इन 'विषाणुओं परजीवियों के बारे में "श्री माता जी" ने 20-25 वर्ष पूर्व ही बता दिया था और इनको निष्प्रभावी करने का तरीका भी सहज-साधकों को सिखा दिया था।

*"उन्होंने" कहा है कि,'प्रकृति' ने जिन वनस्पतियों जीवों को उत्क्रांति की धारा से बाहर निकाल दिया है उनके मृत अस्तित्व 'विषाणु' 'परजीवियों' के रूप में अभी भी उपस्थित हैं।*

*जो मानव के दाहिने मस्तिष्क के 'स्मृति कोष' के एक भाग 'सामूहिक अवचेतन'(Collective Sub-Conscious) में निवास करते हैं।*

*और कभी कभी यहीं से मानव की तीन नाड़ियों में से एक बायीं नाड़ी यानि 'चंद्र नाड़ी=इड़ा नाड़ी

(Sympathetic Nervous System Left) के जरिये मानव देह को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं जिससे मानव बीमार हो जाता है।*

*ये विषाणु कुछ दिन तक मानव देह को बीमार रखते हैं और फिर ये अपने आप ही वापस चले जाते हैं।*

*"श्री माता जी",आगे बताती हैं कि इन विषाणुओं का चिकित्सा विज्ञान के द्वारा कोई भी इलाज किया नहीं जा सकता।

क्योंकि चिकित्सा विज्ञान केवल मानव की दाहिनी नाड़ी से सम्बंधित बाह्य बीमारियों का ही उवचार कर सकता है।*

*फिर "वे" बताती हैं कि यदि तीन जलती हुई मोमबत्तियों अथवा दीपकों के द्वारा मानव की बायीं नाड़ी को इन मोमबत्तियों के प्रकाश से दिन में दो-तीन बार 5-7 मिनट तक प्रकाशित किया जाय।*

*तो ये 'विषाणु' अग्नि तत्व के प्रकाश को सहन नहीं कर पाते तो ये वापस चले जाते हैं और मानव ठीक होने लगता है।*

तीन मोमबत्ती के ट्रीटमेंट को देखने के लिए कृपया नीचे दिए गए यूट्यूब लिंक को क्लिक कर इस विधि का अभ्यास करें सीखें

https://youtu.be/Ijp5grcmSV4

यह वीडियो विशेष तौर से आम जन साधारण के लिए 24-4-2021 की रात्रि को तैयार किया गया है, यह हमने पहले भी शेयर किया है।

तो यह थीं "श्री माता जी" के द्वारा इस विषाणुओं से सम्बंधित कुछ बातें।

अब हम "श्री माता जी" के द्वारा प्रस्तुत कुछ सूक्ष्म तथ्यों को ध्यान के माध्यम से धारण करने के परिणाम स्वरूप जागृत होने वाली अन्तःप्रज्ञा, गहन-ध्यान अनुभवों इससे संबंधित अपने आंतरिक अनुसंधान-युक्त-चिंतन को आप सभी के साथ साझा करने जा रहे हैं।

*हमारी आंतरिक समझ यह कहती है कि जो लोग चंद्र नाड़ी पर जन्में हैं उन पर इस विषाणु का ज्यादा प्रभाव हो रहा है।*

*यदि आप अपनी जन्म पत्री का अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि आपका जन्म तीन में से किसी एक नाड़ी पर हुआ है।*

* यानि, या तो 'आदि नाड़ी=चन्द्र नाड़ी=इड़ा नाड़ी=भूतकाल की शीतल नाड़ी पर या फिर 'अन्त्य: नाड़ी=सूर्य नाड़ी=पिंगला नाड़ी=भविष्य काल की उष्णता प्रधान नाड़ी पर या फिर 'मध्य नाड़ी'=उत्क्रांति की नाडी=सद्ज्ञान की नाड़ी=सुषुम्ना नाड़ी=वर्तमान काल की 'सम-ताप' नाड़ी पर जन्में है।*

*और वर्तमान जीवन की नाड़ी प्रधानता का निर्धारण हमारे वर्तमान जन्म से पूर्व के जन्म में होने वाली मृत्य के कुछ क्षणों पूर्व बनने वाली मन अवस्था के ऊपर ही निर्भर करता है।*

यानि इससे पूर्व जीवन के मृत्यु काल में हम भूत काल की बाते सोच रहे होते हैं या फिर भविष्य के प्रति चिंतित होते हैं या फिर स्वेच्छा से अपनी देह उक्त जीवन का अर्पण "प्रभु" के चरणों में करते हुए इस सुंदर घड़ी का आनंद लेते हुए वर्तमान में स्थित होते हैं।*

यदि हमारे पास जन्म पत्री नहीं है या फिर हम जन्म पत्री में विश्वास नहीं करते तो हमारे वर्तमान जीवन की नाड़ी का आंकलन हमारे स्वभाव मन की प्रवृति से भी किया जा सकता है।

जो चन्द्र नाड़ी पर जन्में हैं या जिनकी मनावस्था अति भूत काल में बनी रहती है जिसकी वजह से यह शीतल चन्द्र नाड़ी अत्यधिक ठंडी(Chilled)हो जाती है।

चंद्र नाड़ी पर जन्में लोगों का पता 'शीत' से सम्बंधित बीमारियों की बारंबारता से भी चलता है यानि ऐसे मानव ठंड से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं।

और उन्हें अक्सर खांसी, नजला जुकाम जल्दी जल्दी होता रहता है यही नहीं सर्दियों में उनके पांव के तलवे काफी ठंडे रहते हैं जिसके कारण उन्हें ठीक प्रकार से नींद भी नहीं आती।

जिसके कारण मानव शरीर को पोषित करने वाली 'दिव्य ऊर्जा' के 'आदर्श प्रवाह' की गति काफी धीमी हो जाती है जिसके कारण जो भी विषाणु हमारे दाहिने मस्तिष्क के 'सामूहिक अवचेतन' से आते हैं वे मानव के कंठ चक्र में रुक जाते है।

और अपना प्रभाव मानव शरीर पर बढ़ाना शुरू कर देते हैं जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे शरीर के रक्षा प्रहरी इन विषाणुओं से संघर्ष करना प्रारम्भ कर देते हैं जिसकी परिणीति तीव्र/मद्यम/हल्के ज्वर के रूप में होती है।

यदि हमारे शरीर का रक्षा तंत्र ठीक है तो यह इन विषाणुओं को वापस धकेल कर पुनः सामूहिक अवचेतन में तीन से सात दिन के भीतर वापस भेज देगा।

वर्ना यह विषाणु हमारे गले से नीचे की ओर जाना प्रारम्भ हो जाएंगे और हमारे फेफड़ों पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर देंगे जिसके कारण मानव की छाती में कफ जमने लगता है जिसके परिणाम स्वरूप स्वास लेने में काफी तकलीफ होने लगती है।

*यह बिल्कुल ऐसा ही होता है जैसे हमारी रसोई में लगे सिंक के पाइप में कुछ कचरा जमा हो जाय तो उसमे से पानी के गुजरने की गति कुछ अवरुद्ध हो जाती है जिसके कारण उस पाइप में कॉकरोच कुछ कीटाणु पनपने शुरू हो जाते हैं।*

और जब हम तीन जलते हुए दीपक या मोमबत्ती की लौ से चन्द्र नाड़ी को ताप देते हैं तो चंद्र नाड़ी की चिलिंग घटने लगती है और वह अपने सामान्य तापमान पर आने लगती है जिसके कारण इस नाड़ी में 'जीवन शक्ति' जा प्रवाह ठीक होने लगता है।

जिसके कारण विषाणु का इस नाड़ी में टिकना काफी मुश्किल हो जाता है इसके साथ साथ उस लौ से उत्पन्न प्रकाश को कोई भी विषाणु झेल नहीं पाता और उसको वापस भागने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

यह वायरस 'जीवन चक्र' से बाहर फेंक दी गयी मृत वनस्पति मृत जीवों की मृतात्माओं का ही 'सूक्ष्मतम रूप' (Nano Particle)होते हैं जिसके कारण कोई भी ऐलोपैथिक दवाई अथवा 'टीका' कभी भी काम नहीं करता।

किन्तु यह इड़ा नाड़ी पर दीपक/मोमबत्ती के प्रकाश को घुमाने से भाग खड़े होते हैं, जैसे 'पिशाच'

(Vampires) अंधेरे कोनो में रहते हैं और सूर्य का प्रकाश झेल नहीं पाते।

जलते हुए दीपक/मोमबत्ती का प्रकाश इन विषाणुओं के लिए सूरज के प्रकाश का ही प्रतिनिधित्व करता है जो सामूहिक अवचेतन के स्थान के अंधरों को भी प्रकाशित कर देता है जिसके कारण इन्हें यह स्थान छोड़कर भागना पड़ता है।

जैसे जली हुई लकड़ी की राख को पुनः जलाया नहीं जा सकता और ही राख को समाप्त ही किया जा सकता है,किन्तु उस राख को किसी अन्य स्थान पर पहुंचाया जा सकता है या जमीन में दबाया जा सकता है।

वास्तव में यह विषाणु हमें बाहर से प्रभावित नहीं करते वरन किसी विषाणु-प्रभावित मानव के सम्पर्क में आने पर उस संक्रमित मानव के विषाणु हमारे 'सामूहिक अवचेतन' में रहने वाले विषाणुओं को अपने 'ऊर्जा क्षेत्र' से खींच कर हमारे शरीर के नाड़ी तंत्र में ले आते है।

यदि हम भूतकाल वादी हैं तो हमारे निश्चित रूप से हमारे ही दाहिने मस्तिष्क से बाहर निकले हुए विषाणुओं का प्रभाव हमारे शरीर पर अवश्य होगा।

अब हम इस प्रकार के विषाणुओं के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए किन्ही तथ्यों पर चिंतन करने जा रहे हैं।

1.तो इससे बचने के लिए जो हमें सबसे सरल प्रथम कार्य करना है तो वह यह है, 'कि हम अपनी प्रवृति में थोड़ा बदलाव लाएं,यानि वर्तमान में रहने का अभ्यास डालें ताकि हमारी चंद्र नाड़ी प्रभावित हो।

2.इस स्थिति को विकसित करने के लिए हमें अपनी चेतना को साक्षी भाव में बनाये रखना होगा, जो भी सकारात्मक नकारात्मक स्थितियां हमारे सामने आये, उन सभी को "परमात्मा" के हवाले करने का अभयास बनाएं।

3.हर प्रकार के भय,असत्य,दिखावे,अहंकार,ईर्ष्या,घृणा,लोभ,तूलना,भेदभाव, नकारात्मक प्रतिस्पर्धा, अति-महत्वाकांशाओं,कंडीशनिंग नैराश्य आदि मानसिक विकारों का त्याग करना होगा।

*क्योंकि जब हम इन उपरोक्त नकारात्मक धारणाओं को अपनी चेतना में स्थान देते हैं तो हमारा स्वयं का मस्तिष्क ही 'विष'(Toxins)का निर्माण करने लगता है।*

*जिसके कारण हमारा नर्वस सिस्टम नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और हमारे भीतर इन विषाणुओं के आमंत्रित करने का वातावरण तैयार हो जाता है।*

*हमको अच्छे से समझना चाहिए कि रोग और मृत्यु दो अलग अलग स्थितयां हैं, यानि जब हमारी मृत्यु का समय नजदीक आएगा तो हमारे शरीर की मृत्यु के अनेको कारण उत्पन्न हो जाएंगे।*

*इसके विपरीत यदि हमारी मृत्यु का काल नहीं आया है तो तीनों लोकों की कोई भी शक्ति हमारे मानवीय जीवन को समाप्त नहीं कर सकती।*

क्योंकि हमारे जीवन चक्र का सारा दारोमदार व्यवस्था स्वयं हमारे "रचनाकार" के हाथों में सुरक्षित है तो फिर भला क्यूं कर हर समय हम भयग्रस्त रहें और जानबूझ कर किसी भी बीमारी को निमंत्रण दें।

4.स्मरण रखें कि जो भी चीजें "माँ वसुंधरा" के प्रेम वात्सल्य से हमें, हमारे भोजन के रूप में उपलब्ध हैं हैं केवल वही चीजे हमें स्वस्थ ही नहीं रख सकती वरन औषधि बन कर हमें ठीक भी कर सकती हैं

यानि,अप्राकृतिक कृत्रिम रूप से मानव के द्वारा बनाई गई सभी चीजें अंततः हमारे स्वास्थ्य जीवन का विनाश ही करती हैं।

5.हमारे शरीर की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए "परमपिता" के द्वारा प्रदान किये गए 'पंच महाभूतों' की शक्ति यानि पांचो तत्वों यानि धरती, अग्नि, जल, वायु आकाश तत्व को निरंतर ग्रहण करते हुए इनका सुनिश्चित अनुपातिक सन्तुलन बनाये रखें।

इनमें से किसी भी तत्व की मात्रा में कमी आने पर हमारा शरीर किसी किसी रोग से ग्रसित हो जाता है, इनको पूरा करने के लिए हमें निम्न कार्य करने चाहिएं।

i) धरती तत्व को ग्रहण करने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा समय नंगे पांव धरती चलने अथवा धरती पर पाँव रख बिताना चाहिये, यही नहीं यदि सम्भव हो तो जमीन पर बैठ कर ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

ii) अग्नि तत्व की पूर्ति के लिए हमें कम से कम 1 घंटे का समय 365 दिन धूप में बिताना चाहिए।

iii) जल तत्व की कमी को हमें पूरा करने के लिए हमें प्रतिदिन 50ml प्रति किलोग्राम शरीर के वजन के मुताबिक जल ग्रहण करना चाहिए वह भी धीरे धीरे चुस्कियां लेते हुए।

यदि हमारे शरीर का वजन 70 किलोग्राम है तो हमें कम से कम 3.5ltr जल प्रतिदिन ग्रहण करना चाहिए।

iv) वायु तत्व की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए हमें कम प्रदूषण वाली अवस्था में कम से कम 6km तक टहलना चाहिए अथवा कम से कम 5 मिनट तक वायुपान करना चाहिए।

इसके लिए हमें अपने दोनों होटों को सीटी बजाने वाली मुद्रा में मोड़ कर भीतर की ओर वायु को धीरे धीरे खींच कर अपने फेफड़ों में भरना चाहिए और फिर धीरे से नसिका के द्वारा निकालना चाहिए।

इस क्रम को करने से हमारे फेफड़े ताकतवर होते हैं और हमारे फेफड़ों के विकार भी नष्ट होते हैं।

v)आकाश तत्व को आत्मसात करने के लिए हमें खुले आकाश के नीचे सुख आसान/पद्मासन में बैठ कर अपने दोनों घुटनों पर दोनों हथेलियों को खोलकर हाथ की उंगलियों को एक दुसरे से कुछ दूर रखते हुए आकाश की ओर खोल कर रखना होगा।

और कम से कम 10 मिनट तक अपने सर के तालु, पाँव के तलवों हथेलियों उंगलियों के पौरवों पर अपने चित्त(मन) को रखकर, समस्त प्रकार विचारों को एक साइड करके, आकाश से आने वाली कुछ ऊर्जा को अनुभव करने का अभ्यास करना होगा।

कुछ ही दिनों/समय के अभ्यास के उपरांत आकाश की ऊर्जा अनुभव देने लावेगी जिसमें बहुत आनंद की अनुभूति होगी और मन में भी हल्कापन महसूस होगा।

6.प्रत्येक श्वांस के द्वारा हमारे भीतर में आने वाले "प्राण" को सांस रोकने के द्वारा अपने हृदय में रोक कर 'अनहद चक्र' को जागृत किया जा सकता है,यानि:

i) आराम से जमीन/कुर्सी/सोफा या बिस्तर में रिलैक्सड मूड में बैठ जाएं।

ii) और फिर लम्बी गहरी सांस लेकर वायु को अपने फेफड़ों में भर लें,

iii) इसके बाद अपनी सांस को 20-30 सैकिंड/जितनी देर तक आराम से रोक सकें, रोकें,

iv) और फिर जब छोड़ने का दिल करे तो धीरे धीरे छोड़ दें।

इस प्रक्रिया का भी लिंक नीचे दिया जा रहा है, यह वीडियो भी दो-तीन दिन पूर्व बना कर पब्लिश किया जा चुका है कृपया इसे एक बार अवश्य देखें

https://youtu.be/JVyJCHJQB08

इस प्रक्रिया को करने से आपका सम्पर्क "ईश्वरीय शक्ति" आपके शरीर में प्रवाहित होना प्रारम्भ हो जाएगी।

जिसके कारण आपके भीतर यदि कोई विकार, विषाणु, परजीवी, जीवाणु अथवा कीटाणु पनप गए हैं जो आपको बीमार कर सकते हैं या बीमार कर चुके हैं, निष्प्रभावी निष्क्रिय होने प्रारम्भ हो जाएंगे और आप स्वस्थ रहने/स्वस्थ होने लगेंगे।

7.अपनी नसिका के दोनों छिद्रों को कभी भी ढक कर रखें, इन्हें केवल तभी ढकें जब आपको मजबूरी में बाहर जाना हो।

क्योंकि हमारा जीवन वायु को ग्रहण करने पर ही टिका हुआ है यदि हम प्राकृतिक श्वसन के मार्ग में स्वयं ही इसको ढककर अवरोध लगाने लगेंगें।

*इस कारण से हमारे शरीर की आंतरिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए जो 'गण' 'देवी देवता' 'आध्यात्मिक विभूतियां' बैठाए गए हैं उनको लगता है कि यह मानव अब स्वयं और जीना नहीं चाहता।*

*इसके कारण 'वे' हमारे शरीर के जीवन को समाप्त करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर देते हैं जिसके कारण आक्सीजन की मात्रा घटने लगती और तेजी के साथ हमारे शरीर में 'फाइब्रोसिस' फैलने लगता जो जान लेवा सिद्ध हो रहा है।*

और फिर हमें 'हाई-पोक्सिया' भी हो जाता है जिससे हमारे फेफड़े कमजोर हो जाते हैं इनमें 'पल्मनरी इडिमा'(फेफड़ों में पानी)नाम का काफी गम्भीर रोग भी पनपने लग जाता है।

इसके साथ ही कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण 'हाइपर कैपनिया' नाम की गम्भीर बीमारी भी लग सकती है जिसके लक्षण आजकल लगभग हर मरीज में परिलक्षित हो रहे हैं इसके केस बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं जिसके कारण मरीजों की जान भी जा रही है।

8.यदि आपको अपने आवश्यक कार्यों से घर से बाहर जाना पड़ता है तो आप कम से कम दो बार 10 मिनट तक 70° तापमान से ऊपर स्टीम जरूर लें जिससे यदि अनजाने में किसी अन्य संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में यदि आप भी गए हैं तो उससे लगा हुआ विषाणु निष्क्रिय हो सके।

9.किसी भी विषाणु का संक्रमण होने पर धैर्य बनाये रखें, बिना घबराए ज्वर को कम करने के लिए किसी भी प्रकार की ऐलोपैथिक दवाई से परहेज करें।

क्योंकि कोई भी ऐलोपैथिक दावा किसी भी विषाणु पर कभी भी कारगर नहीं होती है बल्कि किसी भी प्रकार की एंटीबायोटिक दवा इस विषाणु के संक्रमण की दशा में शरीर के बाकी अंगों को क्षति ही पहुंचा रही है यह पिछले वर्ष से अबतक लगातार देखने को मिल रहा है।

क्योंकि ज्वर इस बात का प्रतीक है कि हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति विषाणु से लगातार संघर्ष कर रही है, हाँ 102° से ऊपर शरीर का तापमान ऊपर जाने पर माथे, हाथ की हथेलियों पाँव के तलवों पर ठंडे पानी में भिगाकर निचोड़ा हुआ तौलिया रख कर प्राकृतिक तरीके से कम करें।

संक्रमण के पहले तीन दिनों तक भरपूर मात्रा में मौसमी/संतरे का ताजा जूस ताजा नारियल पानी ग्रहण करें।

इसके साथ (दाल चीनी,काली मिर्च,तेजपात,अजवायन,तुलसी,अदरक, छोटी इलाइची बड़ी इलायची को कम से कम 500ml पानी में डाल कर जब तक धीमी आंच पर उबालें जब तक वह आधा रह जाय ) काढ़ा बनवा कर सुबह शाम लेते रहें।

इन सभी चीजों को लेने से शरीर का कुछ तापमान कम/समाप्त अवश्य हो जाएगा और आप अपने को काफी स्वस्थ अनुभव करेंगे।

उसके उपरांत भी ज्वर रहने पर भरपूर मात्रा में उबला हुआ पीने योग्य गरम पानी चाय की चुस्कियों की तरह लगातार पीते रहें कच्चे सलाद के साथ हल्का भोजन भी लेते रहें भरपूर आराम भी करें।

आशा है अगले तीन चार दिनों में संक्रमण का असर पूरी तरह से चला ही जायेगा।

ये सारे प्राकृतिक इलाज हमने स्वयं अपने ऊपर आजमाए हुए हैं काफी कारगर साबित हुए है क्योंकि 2019 में हमें दो महीने 28 जनवरी 2019 से लेकर मॉर्च की अंतिम तिथि तक टाइफाइड रहने के साथ साथ वायरल फ्लू भी रहा।

2020 में अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर 2020 के अंतिम सप्ताह तक फिर से तीन महीने तक टायफायड रहा और I L I(Influenza Like Illness) का एक दो बार प्रभाव भी रहा।

हालांकि अपने फैमिली डॉक्टर की सलाह पर कुछ दो सप्ताह के लिए ऐलोपैथिक दवाएं भी डायफायड के दौरान प्रारम्भ के 15 दिनों में चलाईं उनके वाबजूद भी टायफायड आयुर्वेदिक दवाइयों प्राकृतिक इलाज करने पर भी अगले ढाई महीनों तक चलता रहा।

*यदि आपको अपने स्वयं पर विश्वास नहीं है तो किसी किसी आयुर्वेदिक/होम्योपैथिक चिकित्सक से अपना इलाज अवश्य करवाएं।*

10.हमसे अभी तक अनेको लोग पूछ चुके हैं कि इस विषाणु की रोकथाम के लिए एक ही वर्ष के भीतर जल्द बाजी में तैयार किये गए टीके को लगवाएं या लगवाएं क्योंकि सभी के सामने उसके साइड इफेक्ट आने प्रारम्भ हो गए हैं जिससे शरीर के अन्य मुख्य अंग भी प्रभावित हो रहे हैं।

इस विषय पर हमारा केवल इतना ही कहना है कि यदि आप बेहद डरे हुए हैं तो अवश्य लगवा लीजिये क्योंकि आपका लगवाने का भय आपके लिए विष के समान कार्य करेगा और आप मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यंत कमजोर होकर स्नायु तंत्र के अनेको रोगों से ग्रसित हो जाएंगे।

और इसके विपरीत आपकी अंतरात्मा इसके पूर्णतया विरोध में है तो आप इसे कभी भी लगवाएं क्योंकि हमारा हृदय हमारे हित के बारे में हमें अच्छे से गाइड करता है।

फिर भी लोग हमसे पूछते हैं कि आपकी इसके विषय मे अपने स्वयं के बारे में क्या राय है ?

तब बताते हैं कि हमतो अपने स्वयम के लिए पूरी तरह से इसके विरोध में हैं क्योंकि जब यह बात प्रमाणित हो ही गयी है कि किसी विषाणु का कोई भी इलाज मेडिकल साइंस के पास आज तक नहीं है

जो भी इलाज के नाम पर या टीकाकरण के माध्यम से हो रहा है वह मात्र अंधरे में दिशा हीन तीर चलाने अथवा धूल में लठ मारने के समान ही है।

क्योंकि हमारे कई जानने वालों को टीके लगवाने के बाद कई प्रकार की गम्भीर समस्याएं उत्पन्न हो गईं हैं, किन्ही लोगों में नपुंसकता, किडनी, लिवर, हृदय खून जमने की समस्याएं भी परिलक्षित हो रही हैं और कुछ लोगों की तो अचानक मृत्यु तक हो गयी है।

आप सभी जानते ही होंगे कि किसी भी टीके के हर प्रकार के शरीर के मुख्य अंगों में रिएक्शन्स का पता चलने में 10 से लेकर 15 वर्ष तक का समय लगता है।

शायद बहुत से लीगों को तो यह भी नहीं पता है कि इसका अभी तक तीसरा ट्रायल तक नहीं हुआ है तो फिर हम जैसे लोग इसको क्यों कर लगवाएं।

*दूसरे हमें एक साधारण सा तर्क समझ आता है कि किसी विषाणु का टीका यदि कोई बनाया जाता है तो उसमें अन्य कैमिकल के साथ वही 'मृत विषाणु' लेबोरेटरी में तैयार कर डाले जाते हैं।*

*वास्तव में 'लोहे को लोहा ही काटता है' के सिद्धांत पर चल कर इस टीके के जरिये मानव को सबसे पहले संक्रमित ही किया जाता है।*

*ताकि इसके संक्रमण को अप्राकृतिक तरीके से मानव देह में पहुंचाने के कारण मानव की प्रति-रक्षा-तंत्र-प्रणाली सक्रिय हो जाय और इस विषाणु के प्रति एंटीबॉडीज तैयार कर सके।*

*जरा कल्पना कीजिये कि वह संक्रमित किया गया मानव यदि कम से कम 20-25 दिन के लिए अपने को क्वारन्टीन नहीं करेगा।तो वह इस विषाणु का कैरियर बन कर ही घूमेगा और अन्य सभी लोगों में संक्रमण ही फैलाएगा।*

*और इसके विपरीत टीका लगाए जाने वाले व्यक्ति के एंटीबॉडीज टेस्ट के बिना 'एंडोक्राइन सिस्टम' को चेक किये बगैर जानबूझ कर टीके के जरिये उसे संक्रमित किया गया और उसके एंटीबॉडीज सक्रिय नहीं हो पाए तो उस मानव के मुख्य अंगों को अत्यंत हानि पहुंच सकती है।*

इसके नकारात्मक परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए हैं, अभी तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में 10 करोड़ लोगों के टीका लगाया जा चुका है।

*या यूं कहें 10 करोड़ लोगों के शरीरों पर सारे नकारात्मक तथ्यों को उनके संज्ञान में लाये बिना उनके शरीरों पर अनुसंधान शाला का चूहा/सुअर/बन्दर बना कर इतने बड़े स्तर और प्रयोग किये जा रहे हैं।*

*यहां तक कि रिएक्शन्स के कारण स्थिति बिगड़ने पर उसे किसी भी प्रकार का मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है, बल्कि इस टीके के कारण होने वाली उनकी मृत्यु मुख्य अंगों के खराबियों का ठीकरा उनकी पुरानी बीमारियों पर फोड़ कर छुपाया जा रहा है।*

*कोई नहीं जानता इस टीके रिएक्शन्स किन किन अंगों पर किस प्रकार से कितने काल तक होंगे या इसके रिएक्शन्स का 'चेन रिऐक्शन' भी जीवन पर्यंत तक चलेंगे।*

इसके विषय में एक बात और सामने रही है कि टीके के लगने के उपरांत भी यह विषाणु नए नए वेरिएंट में म्यूटेंट(रूप बदलना) हो रहा है जिसके कारण बनाये गए टीके बेका* होते जा रहे हैं।*

*इसका मतलब यह है कि कोई भी टीका कभी कारगर नहीं होने वाला है और वैसे भी टीके बनाने वाली कम्पनियाँ इसकी सफलता की गारंटी 50% से लेकर 70% तक ही ले रही हैं हर वह भी मात्र 6 महीनों तक के लिए।*

*तो जरा गम्भीरता से चिंतन कीजिये कि इन कम्पनियों के द्वारा दी गई समयावधि के कारण आप वर्ष में चार डोज तो 4 से 5 माह के भीतर लेंगे ही और यदि यह विषाणु अपना ऐसे ही रूप बदलता रहा तो हो सकता है कि आपको हर महीने टीका लगवाते रहना पड़े।*

*इस विषय पर हमारा आंतरिक चिंतन तो यह कहता है कि जब संक्रमित होने के बाद हमारे एंटीबॉडीज बनने ही हैं।*

*तो क्यों हम 'स्वाभिक रूप' से संक्रमित होने के लिए अपने को तैयार रखें संक्रमण से बचाव के लिए दैनिक जीवन में 'प्राकृतिक' उपायों को ही आजमाएं।*

*और यह भी जरूरी नहीं है कि हमारे शरीर में हमारे शरीर की प्रकृति तीनो में से किसी भी नाड़ी के स्वभाव के प्रभाव के कारण हमारे शरीर में संक्रमण लग ही जाय, फिर भला क्यों कर हम अपने शरीर को बिन बात के अपने आप संक्रमित करें।*

*यह बात अच्छे से समझनी चाहिए कि जब स्वाभिक रूप से हमें संक्रमण लगता है तो वह केवल हमारी चेतना के 'चंद्र-नाड़ी-दोष' से प्रभावित होने के कारण ही लगता है जैसा कि ऊपर के चिंतन से सुनिश्चित होता है, यानि हमारे मन स्थिति की एक विशेष अवस्था में ही लगता है।*

*ईसका मतलब हमारे स्वाभिक रूप से संक्रमित होने की संभावना मात्र 33.33% ही रह जाती है और इसके विपरीत टीके लगवाने की दशा में यह संभावना 100% हो जाती है तो जरा विवेकशीकता से विचारिये की 33.33% सम्भावना उचित है या 100% सुनिश्चित तौर से स्वयं को संक्रमित करके संक्रमण का प्रसार करने वाला बनना।*

*और एक और आवश्यक तथ्य को समझना बेहद जरूरी है वो यह है कि जब हम नैसर्गिक तौर से संक्रमित होंगे तो यह विषाणु कम से कम 7 दिन तक तो हमारे ENT System में रहेगा और उपचार होने की दशा में ही हमारे फेफड़ों में जायेगा और फेफड़ों को पूरी तरह संक्रमित करने में इसकी कई और दिन लगेंगे।*

*उसके साथ यह भी सम्भावना है कि हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति इस विषाणु के कंठ नाक के क्षेत्र में आने के तुरंत बाद इसे निष्क्रिय करदे अथवा इसे भगा दे और हमारे भीतर किसी भी प्रकार की बीमारी हो ही पाए।*

*किंतु बेहद गम्भीरता से चिंतन चिंता करने वाली बात यह है कि हम टीके के माध्यम से इस विषाणु को अपने शरीर के सबसे बड़े अंग यानी स्किन की सातों परतों को चीरते हुए हमारे समूचे रक्षा तंत्र को बाई पास करते हुए हमारी Vital Power की मेन स्ट्रीम में इसे भेज रहे हैं जिसके रिएक्शन्स पूरी तरह से कोई भी नहीं जानता है।*

*इसका मतलब हम वास्तव में एक प्रकार से हद दर्जे की अज्ञानता से वशीभूत होकर अत्यंत मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं या यूं कहें हम स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि अपने जीवन के साथ खिलवाड़ ही कर रहे हैं।*

*यह तो बिल्कुल ऐसे ही हो गया कि हमारी कलोनी/मोहल्ले में एक रेबीज से ग्रसित कुछ कुत्ते/बन्दर घूमते रहते हैं जिसके कारण लोगों को उनके काटने का खतरा रहता है।*

उनसे बचने के लिए अधिकतर लोग अपने साथ उन कुत्तों/बंदरों को अपने से दूर रखने के लिए एक डंडा साथ रखने के साथ साथ अपने बच्चों को अकेले नहीं निकलने देते और कोशिश करते हैं कि गाड़ी से ही आएं जाएं, यानि प्रिकॉशन लेते हैं तो यह करना निश्चित रूप से एक समझदारी पूर्ण कार्य है।*

और यदि खुदा खास्ता एक दिन अचानक से उनमे से कोई कुत्ता/बन्दर हमें काट लेता है तो हम अपने जख्म को साबुन से अच्छे से धोने के *उपरांत डॉक्टर के पास जाकर एन्टी रेबीज(विषाणु) के इंजेक्शन का पूरा कोर्स करवा लेते हैं।*

*क्या हममें से कोई ऐसा कभी भी करता है कि जानबूझ कर उन कुत्तों/बंदरों से इसीलिए कटवा ले कि उसके एन्टी बॉडीज बढ़ जाएं और इन रेबीज ग्रसित जानवरों के काटने पर भी उनके जीवन में कभी रेबीज का असर हो पाए।*

*अथवा कभी कोई अत्यंत समझदार मानव बिना कुत्ते/बन्दर के काटे अपने एन्टी रेबीज ईजेक्शन, रेबीज से बचने के लिए पहले से ही लगवाता हो।*

इस तथ्य को एक और उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है, मानो आने जाने वालों को लूटने वाला एक वाला बड़ा बदमाश हमारे आस पास के क्षेत्र में रहता है और अधिकतर लोग उस बदमाश से बचकर ही निकलते है।

और यदि अनजाने में उसका सामना हो भी जाता है किसी प्रकार उससे बात किये अथवा टकराये बिना या मजबूरी में उसके द्वारा मागीं गई कुछ रकम देकर अपनी जान छुड़ा कर दाएं बाएं निकल लेते हैं।

यदि हम मूर्खता के वशीभूत होकर उस बदमाश को अपना बना कर अपने स्वयं के घर में अपना हितैषी बना कर ले आएं तो क्या वह हमारा हित करेगा ?

कहीं ऐसा तो नहीं वह चुपचाप या धमका कर हमारे घर का रुपया पैसा,जेवर कीमती सामान लूटने के साथ साथ हमें अथवा हमारे घर के किसी सदस्य को हानि पहुंचा दे,

या धरवालों के साथ बत्तमीजी करे या हमारी सम्पत्ति को लूटने की खातिर हमारी या हमारे परिवार के सदस्यों की हत्या तक कर डाले अथवा हमारी कमजोरियों को जानकर आजीवन हमसे धन ऐंठता रहे ? अवश्य विचरियेगा।

हो सकता है इस लेख को पढ़ने वाले कुछ लोग अत्यंत विद्वान/चिकित्सक उच्च कोटि के वायरोलॉजिस्ट जो यह समझ रहें हों कि यह लेख लिखने वाला इंसान कितना अज्ञानी है जो चिकित्सा विज्ञान के बारे में ठीक प्रकार से जानता भी नहीं है फिर भी इस प्रकार की बाते लिख रहा है।

यकीनन हम तो अत्यंत साधारण पढ़ाई लिखाई किये हुए सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले रहे हैं किन्तु हम यह सारी बाते अपने अंतःकरण में चलने वाले चिंतन दिसंबर 2019 से इस तथाकथित महामारी के बारे ढेर सारी सूचनाएं पड़ने इस विषाणु के इलाज के कारण मरने वाले अथवा गम्भीर रूप से बीमार होने वाले लोगों का अध्यन करने के उपरांत ही लिख रहे हैं।

हो सकता है हम इस प्रकार के विषाणुओं के विभिन्न वर्गों इन विषाणुओं के हमारे RNA DNA के प्रभाव के कारण इन विषाणुओं के म्यूटेशन के बारे में हम गहराई के साथ भले ही जानते हों किन्तु अन्य विद्ववानों के अनुभवों विचारों का हमने कुछ अध्यन अवश्य किया है।

इसीलिए अपने इस आंतरिक प्रवाह के जरिये आप तक उन तथ्यों को सांझा किया है,हो सकता है हम चिकित्सा विज्ञान के अनेको तथ्यों के बारे में गलत हों किन्तु हमारी अंतरात्मा इस विषाणु की तथाकथित रोकथाम के लिए हमारे स्वयं के शरीर में कराए जाने वाले टीकाकरण को पूरी तरह नकारती है।

कृपया कोई भी व्यक्ति हमारे हृदय के उदभावों को लेकर इस बात के लिए बुरा माने बल्कि हमें अज्ञानी समझ कर अपने मन को तनिक भी पीड़ा पहुंचाए, हमसे ढेर सारे सहज-साधना से जुड़े लोग अन्य लोग प्रश्न करते हैं तो उन सभी के लगभग सभी प्रश्नों के एवज में हमारे अंतःकरण से यह लेख फूटा है बाकी पूर्ण सत्य क्या है यह तो इस रचना को "रचने वाला" ही जाने।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार आज तक Common Cold, Influenza(Bird Flu H5N1 & H9N2 and Swine Flu H1N1 & H3N2) SARS,

MERS, COVID-19, Dengue Virus, Hepatitis C, Hepatitis E, West Nile Fever, Ebola virus Disease, Rabies, Polio, Mumps, and Measles इत्यादि RNA विषाणु ही पहचाने गए हैं जिनके कारण लाखों लोग पूरे विश्व में हर साल मरते हैं और इनका भी कोई सही टीका आज तक बन नहीं पाया है।

इनके अतिरिक्त निम्न DNA विषाणु ही पहचाने गए हैं जिनके इलाज के नाम पर कुछ दवाइयां खिला दीं जाती हैं जिनका थोड़ा बहुत असर ही हो पाता है,जो नीचे दिए जा रहे हैं :-

DNA Viruses (“HAPPy”)

H = Herpes virus (HSV, VZV, CMV, EBV);

H = Hepadnavirus (hepatitis

A = Adenovirus

P = Papovavirus (HPV)

P = Poxvirus (molluscum, smallpox, Orf, milker’s nodule)

P = Parvovirus B19 (only single-stranded DNA virus): think “slap cheeks with one DNA” (single-stranded)

जबकि हमारे सामूहिक अवचेतन में सैकड़ो किस्म के विषाणु मौजूद हैं जो हमारे शरीर को समय समय पर बीमार करते हैं और कुछ समय बाद अपने आप ही चले जाते हैं जिनका पता अभी तक किसी को मालूम ही नहीं है और ही वे सारे के सारे पहचाने ही जा सकेंगे।

अगर हम इसको इस प्रकार से लें कि ये सभी प्रकार के विषाणु, जीवाणु, परजीवी कीटाणु 'प्रकृति' के द्वारा कुछ मानवों के द्वारा मानवता, 'प्रकृति' "परमात्मा" के विरोध में किये जाने वाले नकारात्मक कार्यों के कारण 'प्रकृति' में सन्तुलन स्थापित करने के किये कुछ काल के अंतराल में स्वयम ही सक्रिय हो कर अनेकों मानवीय जीवनों का अंत कर देते हैं।

*या यह भी कह सकते हैं कि अत्यंत महत्वकांशी लोगों के द्वारा अनियंत्रित अनेको प्रकार के लालचों के वशीभूत होकर वे जानबूझ कर षडयंत्रो के चलते अनेको प्रकार के जीवनों में अप्राकृतिक रूप से छेड़ छाड़ करके इस इन तथाकथित विषाणुओं,जीवाणुओं, परजीवियों कीटाणुओं का नामकरण करके समय समय पर मानव जाति को कष्ट देते ही रहते हैं जिससे अक्सर लोगों की अपूरणीय क्षति होती है और मानवजाति को 'प्रकृति' "परमात्मा" के प्रकोप क्रोध का भाजन बनना पड़ता है।*

यदि मनुष्य "परमात्मा" 'प्रकृति' के साथ कदम से कदम मिला कर चले तो वह आसानी से किसी भी प्रकार के रोग का शिकार हो पायेगा जिसके कारण हमारी यह 'वसुंधरा' एक सुंदर उपवन में परिवर्तित हो जाएगी जो आज एक भयानक नरक में परिवर्तित होती जा रही है जहां रहने की इच्छा भी दम अब दम तोड़ने लगी है।

कभी तो "प्रभु" हम जैसों की पीड़ा को महसूस कर इस धरा पर परिवर्तन लाएंगे और इसे एक स्वर्ग में तब्दील करेंगे, हम पूर्ण हृदय से "परमात्मा" से यही कामना करते हैं।

इसके बाद हम सभी अपने चित्त में इस विश्व के सभी भोले भाले, निर्दोष निरपराध लोगों को लाएंगे जो इस मानव जनित तथाकथित महामारी रूपी षड्यंत्र का शिकार होकर या तो गम्भीर रूप से बीमार हो गए हैं और या फिर भूख से मर रहे हैं,

और फिर अपने मध्य हृदय की 'पवित्र ऊर्जा' को कम से कम 10 मिनट तक उन सभी के हृदयों में प्रवाहित करते हुए "परमेश्वरी" से इन सभी के कल्याण की प्रार्थना भी करेंगे।

इसके अगले चरण में हम इस विश्व के समस्त राक्षस, शैतान,नरपिशाच सम महा दुष्टो को लाएंगे जिन्होंने इस महामारी को एक षड्यंत्र के द्वारा रचा है,

और इनके साथ उन समस्त गिध्द रूपी मानवों को लाएंगे जो हस्पतालों, दवाइयों मेडिकल आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कालाबाजारी कर रहे हैं,

इस महामारी की आड़ में बीमार लोगों की हत्या कर उनके शरीर के अंग निकाल कर बेच रहे हैं यहां तक कि शमशान में चिता जलाने तक के लिए मजबूर लोगों को लूट लूट कर खा रहे हैं,

ऐसे समस्त लोगों के सर्वनाश खात्मे के लिए "श्री महाकाली" "श्री कल्कि" से पूर्ण हृदय समर्पण के साथ प्रार्थना करेंगे और इस प्रार्थना के साथ कम से कम 15 मिनट के लिए ध्यान में उतर जाएंगे।

अंत में यह चेतना आप सभी के अच्छे स्वास्थ्य, प्रसंन्नता सदा आनंद में रहने, चहुं मुखी कल्याण के साथ साथ आप सभी इस अनमोल जीवन की सार्थकता के लिए सच्चे हृदय से प्रार्थना भी करती है।

कृपया व्याकरण से सम्बंधित किन्ही त्रुटियों के लिए क्षमा कीजियेगा क्योंकि यह लेख लगभग दो ही सिटिंग में लिखा गया है जो आज शाम 4 बजे से शाम 7 बजे तक चली और फिर रात्रि 9 बजे से लेकर मध्य प्रातः 2.45 बजे तक यानि लगभग 8.5 घंटे में समाप्त हुई।

इस लेख को पूरा आत्मसात करने के लिए हृदय से आभार,यदि यह लेख आपको सत्य प्रतीत हो तो इसे अन्य लोगो को भी फारवर्ड करें।

और इसके विपरीत इस लेख को पढ़ते पढ़ते आप बोर हो गए हैं तो यह चेतना पूर्ण हृदय से क्षमा प्रार्थी हैं।

मानव चेतना के विकास के लिए जो भी इस अस्तित्व के माध्यम से "परमेश्वरी" करवा रही हैं अथवा प्रेरणा प्रदान कर रही हैं, उसी के अनुसार यह चेतना अपना "परम कर्तव्य समझ कार्य कर रही है। "

-------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


28-04-2021

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