Monday, October 3, 2016

"Impulses"-308-"ईबादत"-(अनुभूति-39-13-01-14)

"ईबादत"

"जिंदगी और बन्दगी दोनों एक दूसरे के मुक्कमल होते हैं,

एक ही सिक्के के ये दो खूबसूरत पहलू होते हैं,

गर भरपूर जिंदगी जीने की इच्छा होती है,

तो शिद्दत--बन्दगी से जुड़ने की तलब होती है,

गर 'आशिकी--बन्दगी' के क़दमों में सुबह शाम होती है,

तो यही 'हकीकत--इश्क' की दास्तां होती है,

फिर ये जिंदगी तोहफे में तब्दील हो, नुमायदार होती है,

फिर "उसका" आगाज दिल ही दिल में होता है,

जो एक अपना ही 'अक्स' सा मालूम देता है,

फिर इसी 'अक्स' का हर एक दिल में दीदार होता है,

"जिसका" एहसास जिस्म का कतरा कतरा करता है,"

"जिसकी" मौजूदगी का बयां वो नूरानी चेहरा करता है,

"जिसकी" दीवानगी नस नस में एक नशा सा भर देती है,

"जिसकी" मुहब्बत मदहोश सा कर देती है,

"जिसकी" फितरत बेहोश सा कर देती है,

"जिसके" सुरूर में ये दुनिया ग़ाफ़िल हुई जाती है,

"जिसकी" 'आमद' से इस कायनात का जर्रा जर्रा महकता है,

"जिसका" तस्सवुर तड़पती रूहों को चैन देता है,

"जिसकी" आशिकी में फ़ना होने को दिल मचलता है,

यही तो "उसकी" इबादत का इकलौता सलीका है।"

-----------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"



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