Thursday, October 20, 2016

"Impulses"--311--"सहज-मिथक"

"सहज-मिथक"

"एक आम धारणा जागृति के समस्त प्रकार के कार्यों के प्रति सहजियों के बीच चर्चा में बनी रहती है, कि जिस सहजी के घर के लोग विशेष तौर पर पति या पत्नी सहयोग करते हैं तो उनके लिए सहज का कार्य कर पाना बहुत आसान हो जाता है और वो खूब सारा कार्य आसानी से कर पाते हैं ध्यान में औरो के मुकाबले ज्यादा गहनता पाते हैं।

और इसके विपरीत जिनके घर के लोग व् पति या पत्नी सहज का व् "श्री माता जी" का विरोध करते हैं तो उनके लिए सहज से सम्बंधित कार्य यहाँ तक कि घर में बैठ कर ध्यान कर पाना भी मुश्किल होता है और ऐसे सहजी अपने जीवन की कठिनाइयों व् विपरीत परिस्थितियों के कारण गहराई में उतर नहीं पाते।

ये बात अक्सर कार्य कर पाने वाले सहजियों के मुख से ही सुनी जाती है।वो समय समय पर अन्य सहजियों के सामने अपनी लाचारगी एवम् मजबूरी प्रगट करते रहते हैं और स्वम् को कार्य कर पाने के दोष भाव से मुक्त रखने का प्रयास करते रहते हैं। 

वास्तव में मेरी चेतना के मुताबिक ये पूर्णतया सत्य नहीं है क्योंकि ये किसी भी साधक/साधिका की अपने जीवन के प्रति दृष्टिकोण व् प्रार्थमिकता पर ही निर्भर करता है।

चेतना का कार्य करना या करना हमारी अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता करता वरन हमारी श्रद्धा, समर्पण, भक्ति व् "श्री माँ" के प्रति सच्ची लगन व् निष्ठां पर ही निर्भर करता है। बल्कि सच्चाई ये होती है कि जिन साधक/साधिकाओं को घर के सदस्य सहयोग करते हैं उनको विरोध का सामना करने वाले सहजियों से ज्यादा त्याग व् अन्य कार्य करने पड़ते हैं।

क्योंकि ऐसे सहजियों को घर के सदस्यों को प्रसन्न रखने के लिए निरंतर प्रयत्न करने पड़ते हैं क्योंकि ऐसे सहजियों से घर के सदस्य जरुरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखते है। उनको दूसरों की खातिर अपनी स्वम् की बहुत सी इच्छाओं व् आराम का त्याग कर अतिव्यस्त रहना पड़ता है। और उनको स्वम् के विकास के लिए वांछित समय ही नहीं मिल पाता है।जिस कारण गहनता में स्थापित होने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

इसके विपरीत घर के सदस्यों के द्वारा विरोध का सामना करने वाले ज्यादातर साधक/साधिका पति या पत्नी या अन्य नजदीकी रिश्तों की सहज या "श्री माता जी" के प्रति नाराजगी के कारण अपनी बहुत सी सुख-सुविधाओं के छिनने व् आवश्यकताओं का त्याग करने का साहस नहीं जुटा पाते।

और लगातार कम्प्रोमाइज करते चले जाने के कारण उच्च अवस्था को प्राप्त नहीं हो पाते।क्योंकि उनको अपने सुख-सुविधा पूर्ण जीवन से अत्यधिक लगाव होता है जिसके कारण सहज उनके लिए दूसरे, तीसरे या चौथे पायदान पर आता है। बल्कि यदि गहराई से चिंतन करके देखा जाए तो पाएंगे की ध्यान में गहनता व् तरक्की अति कठिन परिस्थितियों व् स्थितियों में ही होती है।

जैसे भक्त प्रहलाद, ध्रुव, मीरा व् अन्य कई साधको/साधिकाओं ने "प्रभु" से मिलने की लगन में अपने मान-अपमान की भी परवा नहीं की और साथ ही अपने जीवन के प्रति मोह को त्याग कर "श्री हृदय" में स्थान पाया था। 

एक सच्चे साधक/साधिका के लिए उनके जीवन में घटित होने वाली समस्त प्रकार की विषमताएं, पीड़ाएँ, विछोह, विरोध, ध्यान में उच्च अवस्था प्राप्त करने के साधन ही होते है।

और इसके विपरीत सांसारिकता को ही अपने जीवन में प्रथम दर्जा देने वाले सहजियों के लिए ये उपरोक्त कठिनाइयों की चर्चा करना केवल दूसरो के समक्ष अपनी वास्तविक जिम्मेदारी से बचने के लिए व् दूसरो की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए एक जरिया मात्र हैं।


इस अदभुत निरानंद के मार्ग पर ठीक प्रकार से केवल वही चल सकता है जिसके लिए "प्रेम-प्रसार" सर्वोच्च प्राथमिकता पर आरूढ़ है और जो हर पल हर क्षण "श्री माँ" के प्रेम व् इच्छा को सारे संसार में पहुंचाने का जूनून अपने भीतर में रखता है।"
 ------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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