Tuesday, January 11, 2022

"Impulses"--561-- "सच्च।- धर्म"

 "सच्च।- धर्म"


"एक 'सच्चे धार्मिक' व्यक्ति की भक्ति,विश्वास निष्ठा जब "ईश्वर" में गहन होने लगते हैं।

तब "वे" उस पर अनुकंम्पा करते हैं और किसी किसी 'माध्यम' से उसे अपने तक आने का मार्ग प्रदान करते हैं।

और जब वह मानव 'उस' मार्ग पर पूर्ण श्रद्धा के साथ चलना प्रारम्भ कर देता है।

तब उसको अपने भीतर मुखरित होती हुई अपनी 'आत्मा' का आभास होने लगता है और वह मनुष्य धीरे धीरे आध्यात्मिक होने लगता है।

*इसीलिए एक धर्मिक इंसान आध्यात्मिक तो हो सकता है किन्तु एक आध्यात्मिक व्यक्ति कभी भी धार्मिक नहीं हो सकता।*

वास्तव में 'बाह्य धर्म' तक सीमित रहने का मतलब तालाब में तैरने के समान है।

और आध्यात्मिक होने का आशय अपने आत्मा रूपी सागर की अनंत गहराइयों में उतरकर हीरे-मोती खोजने के जैसा है।

ऐसा मानव धर्मिक झगड़ों/कट्टरता/उन्माद का कभी भी हिस्सा नहीं बन सकता क्योंकि वह तो सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है।"


------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


12-11-2020

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