Monday, April 4, 2022

"Impulses"--589--"चिंता, चिता समाना"

"चिंता, चिता समाना"


"हममें से बहुत से लोग अपने भविष्य को लेकर अत्यंत चिंतित रहते और इसी चिंता के चलते भीतर ही भीतर बेहद दुखी आशंकित रहने लगते हैं।

जैसे चिता की लपटें उस पर रखे मृत शरीर को धीरे धीरे जला कर राख कर देती हैं।

*ठीक इसी प्रकार से चिंता की अग्नि नकारात्मक विचारों की लपटों के द्वारा मानव की चेतना को भीतर ही भीतर जलाना प्रारम्भ कर देती है।*

जिसके परिणाम स्वरूप उसको कुछ ही दिनों में मधुमेह की बीमारी लग जाती है जो उसके शरीर को दीमक की तरह खोखला करती रहती है।

*वास्तव में "ईश्वरीय व्यवस्था" के अनुसार मानव का भविष्य की चिंता में लिप्त होना/मनुष्य के द्वारा स्वयम ही अपना/किसी का भविष्य सुनिश्चित करना पूर्णतया वर्जित है।क्योंकि यह कार्य केवल और केवल "प्रभु" के आधीन है।*

यदि जाने अनजाने में हम ऐसी धृष्टता कर जाते हैं तो हमारे शरीर के भीतर बैठे देवी देवता हमारी इस प्रकार की सोचों के प्रति लिप्तता को "परमपिता" की अवहेलना मानते हैं।

और हमको चेताने के लिए सजा के रूप में इस प्रकार की बीमारी देकर आगाह करते हैं ताकि हम अपना तथाकथित भविष्य "ईश्वर" के "श्री चरणों" में छोड़ दें।"

---------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


11-12-2020

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