Wednesday, April 6, 2022

"Impulses"--590-- "धूर्तता है महामूर्खता"

 "धूर्तता है महामूर्खता" 


"बहुत से लोग अपने आप को अत्यंत चतुर समझते हैं,और रात दिन सीधे सच्चे लोगों को अपना बनाकर धोखा देते हैं/छलते हैं/दबाते हैं/उनसे नाजायज फायदा उठाते हैं।

और फिर अपने घर के/अपनी जैसी फितरत वाले चंद लोगों के बीच में जाकर उन छले गए लोगों की खूब हंसी उड़ाते हैं और अपने को बहुत गौरान्वित महसूस करते हैं।

*किन्तु ऐसे मूर्ख यह नहीं जानते कि जिनके बीच में खड़े होकर वे अपनी धूर्त्तताओं का स्वाद ले रहे हैं वही लोग भीतर ही भीतर ऐसे लोगों से दूरी बनाना शुरू कर देते हैं।*

क्योंकि वे समझ जाते है कि ये व्यक्ति किसी का सगा नहीं है, एक दिन उनको भी धोखा अवश्य देगा, इसी कारण कुछ समय बाद ऐसे लोग एकदम अकेले ही रह जाते हैं।

*इसके अतिरिक्त ऐसे लोगों/इनके सहयोगियों/इनके राजदारों तक से "माँ जगदम्बा" अत्यंत कुपित हो जाती हैं जो सभी मानवों के 'मध्य हृदय' में निवास करती हैं।क्योंकि "वह" स्वयं भोले भाले सच्चे लोगो का सौरक्षण करती हैं।*

"उनके" क्रोध से ऐसे इंसानो का हृदय बेहद कमजोर हो जाता है और वह भीतर ही भीतर हर समय आशंकित भयभीत रहने लगते हैं।

और भय के कारण उसके शरीर में 'एन्टी बाडीज' बनने कम/बन्द हो जाते है एक दिन अंतिम समय तक के लिए बिस्तर पर पड़ जाते हैं।"

---------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


12-12-2020

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