Friday, April 22, 2022

"Impulses"--596-- "कोरोना"-'एक अभिश्राप या वरदान' (भाग-4)

 "कोरोना"-'एक अभिश्राप या वरदान'

(भाग-4)


"मई 2020 के बाद से अब जाकर "श्री माँ" की अनुकंम्पा से इस लेख के पूर्ण होने का समय पुनः आया है।

ii)पूजा-पाठ, अनुष्ठान आदि करने वाले धार्मिक मानवों के लिए वरदान:-

इस वर्ग में ऐसे सभी मानव आते हैं जो "ईश्वर" से मिलने के लिए प्रतिदन/प्रति सप्ताह/प्रतिमाह मन्दिर,मस्जिद,गुरुद्वारे चर्च जाया करते हैं।

यदि वे इन धर्मिक स्थानों पर जा पाएं तो अत्यधिक बेचैन हो जाते हैं और इस कारण से उनका मानसिक संतुलन अक्सर बिगड़ जाया करता है।

यहां तक कि वे कई बार तो डिप्रेशन में भी जाते हैं और पूजा पाठ कर पाने की कारण अपने घर के लोगों से भी कभी कभी लड़ बैठते हैं।

ऐसे सभी लोगों को इस लम्बे कोरोना काल में यह अच्छे से समझ गया कि "प्रभु" केवल धार्मिक स्थानों में ही नहीं बल्कि हर स्थान पर उपलब्ध हैं बल्की हमारे स्वयम के भीतर भी रहते हैं।

iii) आध्यात्मिक लोगों के लिए वरदान:-

ऐसे सभी मानव जो आंतरिक रूप से "भगवान" के प्रति जागृत हैं और जो अक्सर समय मिलते ही "उनकी" सच्चे हृदय से उपासना/ साधना के माध्यम से अपने प्रिय 'इष्ट' का निरंतर स्मरण करते हुए ध्यान में उतरते रहते हैं।

ऐसे सभी मानवों के लिए यह वर्तमान काल अत्यंत लाभकारी है और एक प्रकार से "प्रभु" की अनुकंम्पा ही है।

क्योंकि अब वे लोग अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए आसानी से समय निकाल पाए जो पहले अपनी रोजी रोटी की व्यवस्था के कारण भरपूर समय नहीं निकाल पा रहे थे।

iv)वास्तविक आत्मसाक्षात्कारियों के लिए वरदान:-

"श्री माँ" के द्वारा "उनके" सहस्त्रार से जन्में 'गणेशों' के लिए तो यह समय किसी सुनहरी अवसर से कम नहीं है।

जो रात दिन दिल में यही कामना करते रहते हैं कि हमको ध्यान की गहराई मिले, हमारी चेतना उन्नत हो।

और हम अपनी 'जीवात्मा' की मुक्ति का साधन सुनिश्चित कर सकें और "श्री माता जी" का सुंदर यंत्र बन कर उनके स्वप्नों को पूरा करने में सहयोग कर सकें।

इस कोरोना काल के कारण बहुत से सहजियों की एक पुरानी भयमिश्रित कंडीशनिंग भी टूटी।

कि,यदि हर सप्ताह सेंटर जाकर सामूहिक ध्यान सामूहिक पूजा नहीं की तो हमारा उत्थान नहीं हो सकता और यदि हम सेंटर नहीं गए तो हमारे चक्र भी पकड़ेंगे।

इस कंडीशनिंग के कारण कुछ सेंटर कार्डिनेटर अच्छे सच्चे सहजियों को अत्यधिक तंग किया करते थे। और बार बार अनेको किस्म के प्रोटोकॉल का हवाला देकर अनेको सहजियों का उत्पीड़न किया करते थे।

*हमें इस बात का अच्छे से एहसास है कि ऐसे कॉर्डिनेटर आजकल बहुत ही दुखी रहे होंगे कि,

अब किन पर वे अपना शासन चलाएं ?

किन को प्रोटोकोल रूपी भोजन कराएं ?

किन को अब उनकी तथा कथित गलतियों के लिए लताड़े ?

किन को अब बात बात पर धमकाएं ?

किन के चक्र पकड़ पकड़ कर उन्हें अब हड़काएँ ?

किन को अब "श्री माता जी" की वाणी सुना सुना कर धिक्कारें ?

कौन अब किन्ही अवसरों पर हवन पूजा आदि अपने घर पर कराने की याचना करेगा ?

कौन अब नए लोगों को आत्मसाक्षात्कार का कार्यक्रम करवाने के लिए उनकी मिन्नते करेगा ?

कौन अब उनके तथाकथित ज्ञान से लाभ उठाने के लिए उनसे सलाह मशविरा करेगा ?

उनको तो ऐसा अनुभव हो रहा होगा मानो उनका कोई साम्राज्य ही डूब गया हो,

हम समझ सकते हैं कि उनको तो ऐसा लग रहा होगा जैसे उनका सारा का सारा वर्चस्व ही समाप्त हो गया हो।*

*ऐसा प्रतीत होता है कि "श्री माता जी" ने ऐसे ही दुष्ट/जड़/अहंकारी प्रवृति के सहजियों का संस्थागत वर्चस्व तोड़ने के लिए ही 'कोरोना' नाम की माया रची है।

और शायद "वह" यह भी चाहती रहीं होंगी कि संस्थाओं पर आश्रित सहजी अब आत्मनिर्भर बनने की दिशा में चलें और 'वर्टिकल ग्रोथ' में भी आगे बढ़े।

लगता है इसलिए "उन्होंने" 'अपनी' सभी पूजा बाह्य रूप में स्वीकार नहीं की।

ऐसा प्रतीत होता है कि "वह" अब हम सभी के हृदयों में ही पूजा करवाना चाहती हैं ताकि हमारी गहनता,आत्मिक ज्ञान सूक्ष्म समझ में उन्नति हो।*

क्योंकि जब हम अपने ही हृदय में "श्री माँ" की उपासना करते हैं तो हमारा हृदय चक्र खुलता है जो बाकी के चक्रों को भी जागृत करने में मदद करता है।

और चक्रों के ठीक प्रकार से जागृत होने पर ही हमारी आत्मा के प्रकाशित होने की संभावना बनती है।

कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन की मजबूरी में अब वही सेंटर्स से चिपके हुए सहजीयों ने अपने अपने घरों में ही ध्यान किया अब भी कर रहे हैं।

जिसके कारण उनको गहन ध्यान में उतरने का बहुत ही अच्छा मौका मिला।

इस काल का एक यह भी लाभ है कि जो सहजी ध्यान के दौरान अपने चित्त का प्रसार नहीं कर पाते थे।

वे भी अब ध्यान में उतर कर अपने चित्त की सहायता से अपनी पूर्व स्मृति के आधार पर मनचाही सामूहिकता का आनंद ले पाए।

यही नहीं अनेको सहजी आन लाइन ध्यान-सामूहिकता का भी भरपूर लुत्फ उठाते हुए अपनी चेतना को निरंतर विकसित करते जा रहे हैं।

यानि कुल मिला कर "श्री माता जी" ने समस्त सहजियों की हर प्रकार की कंडीशनिंग को पूर्णतया छिन्न भिन्न कर दिया है ताकि सहजी अंतर्जगत की यात्रा की ओर अग्रसर हो सकें।

v)गहनता उच्च अवस्था का स्वांग रचने वाले उथले सहजियों को अनावृत करने के लिए वरदान:-

इस काल में ऐसे अनेको प्रतिष्ठित सहजी अनावृत हो गए जो बहुत ही ऊंचे दर्जे के माने जाते थे।

क्योंकि इनमें से बहुत से सहजी तो कोरोना के डर के मारे रात दिन अपने चक्र और नाड़ियां संतुलित करने में ही लगे रहे।

और बहुतों का तो अब ध्यान ही नहीं लग पा रहा है क्योंकि ये लोग बाह्य रूप से सहज की अनेको गतिविधियों में सदा लिप्त रहे।

जिसके कारण उनका स्वयं के साथ ध्यान में उतरने का अभ्यास कभी भी ठीक से बन ही नहीं पाया।

साथ ही जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपनी लोकप्रियता अनेको लोगों की मूर्खता/विवेकहीनता/बुद्धिविहीनता के पैमाने के स्तर को नापने के दो बार प्रपंच रचवाया।

इस प्रकार के हास्यपद दृश्य देखकर हमको अपने बचपन के कुछ किस्सों का स्मरण हो आया।

*जब हम छोटे थे तो बचपन में हम कई प्रकार के मदारियों सपेरों को देखते थे। जो सड़क पर मजमा लगाते थे और लोगों को इकठा करके तमाशा दिखाया करते थे।

उनमें से कुछ मदारी भालु नचवा कर देखने वालों का मनोरंजन करते थे,

तो कुछ बंदर बन्दरिया का खेल दिखा कर लोगों को खूब हंसाते थे,

तो कुछ अपने जमूरे से कई करतब दिखवा कर लोगों से तालियां बजवाते थे,

तो कुछ अकेले ही अपने मुंह से गोले निकाल कर लोगों को आश्चर्यचकित कर देते थे,

तो कुछ लकड़ी को सांप की तरह चलवा कर देखने वालों को हैरत में डाल देते थे।

इनके अलावा कुछ सपेरे भी टोकरी में से नाग को निकाल कर उन्हें क्रोधित कर फुफकार लगवाते थे,

तो कुछ सांप और नेवले की लड़ाई करवा कर साँप को ख़ूनम खून करवा देते थे,

इन सभी मदारियों सपेरों में तीन बातें समान रहती थीं।

पहली, ये लोगों को इकठ्ठा कर मजमा लगाते थे,

दूसरी,ये तमाशबीनों को अनेको प्रकार से सम्मोहित कर उनसे प्रशंसा बटोरते थे,

और तीसरी, ये उन चमत्कृत लोगों से बाद में किसी किसी तरीके से पैसे एकत्रित करते थे।*

हमारे देश के प्रधान सेवक ने कोरोना को भगाने के नाम पर अशुभता के प्रतीक बर्तन-भांडे खूब बजवाये,

लाइट को बंद करवा कर दीपक मोमबत्तियां जलवाते हुए अत्यंत चतुराई से अपनी पार्टी के स्थापना दिवस को सभी से सेलिब्रेट भी करवाया।

तो बहुत सारे सहज अनुयाइयों ने भी अपनी अपनी जागृति/विवेकशीलता बुद्धिमत्ता का त्याग कर गुलामों मूर्खों की भीड़ में शामिल होकर यह साबित कर दिया कि उनके ह्रदय में प्रकाश का अभी भी काफी अभाव है।

या फिर यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे सहजी केवल नाम मात्र के ही सहजी हैं जिन्होंने सहज को केवल और केवल बाह्य रूप में एक धर्म की तरह अपना लिया है।

जिनका "श्री माता जी" के स्वप्न से कोई लेना देना नहीं है,ये लोग तो केवल और केवल अपने सांसारिक लाभ के लिए ही सहज से जुड़े हैं।"


--------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


..........To be Continued


24-12-2020




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