Monday, August 9, 2010

"Impulses"---(चिंतन)-Contemplation----1

"Impulses"----"चिंतन"

1) " मस्तिष्क तूलना को उत्पन्न करता है, तूलना से अक्सर हीनता की उत्पत्ति होती है, हीनता को छुपाने के लिए अहंकार जन्म लेता है और अहंकार का दुखद परिणाम "ईर्ष्या" प्रगट होती हैऔर ईर्ष्या दीमक की तरह अच्छे अच्छे भावों को चाट जाती है व् मनुष्य पूरी तरह पतन के गर्त में दफन हो जाता है, क्योंकि ईर्ष्या प्रकृति व् परमात्मा विरोधी होती है, इसीलिए समस्त गण, रूद्र व् देवता उस मानव से पूरी तरह रुष्ट हो जाते हैंइसका केवल एक ही उपाय है, और वो है, "परमात्मा" के "श्री चरणों" में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाना".------ 03.08.10

2) "मन एक पारदर्शी कांच के पात्र के समान है, जो भी चीज इसमें डाली जाती है, ये उसको स्वत ही दर्शाता हैक्यों मन में ईशवर को रखा जाए ?" -------- 05.08.10

3)"मानवीय जीवन मुख्यत पांच प्रकार की भूखो से बंधा होता है:-
i)पेट की भूख, खाद्य पदार्थ से संतुष्ट होती है। ii) तन की भूख, संपर्क से संतुष्ट होती है। iii) मन की भूख, भावनाओं से संतुष्ट होती है। iv) मस्तिष्क की भूख, ज्ञान से संतुष्ट होती हैएवम,v) आत्मा की भूख प्रभु के ध्यान से संतुष्ट होती हैयदि जीवन में किसी भी प्रकार की भूख की संतुष्टि का आभाव है तो, चिंता करें, आत्मा के माध्यम से "परमात्मा" अपने हिसाब से उस कमी को बड़ी सुन्दरता से पूरा कर देंगेविशवास रखें."
------- 06.08.10

4)"दिमाग एक औजार की तरह है, और हृदय एक मिस्त्री की तरह , और मिस्त्री जानता है, की औजार का इस्तेमाल कैसे किया जाता है."--------- 10,05.10
("Brain is a tool and heart is a mechanic, a mechanic knows how to use a tool.")

5)"जब तक ज्ञान रुपी सूर्य का उदय नहीं होता तब तक दुःख परछाईं की तरह नजर नहीं आता, इसीलिए मानव अज्ञानता में सदा दुखी रहता हैऔर सूर्योदय होने पर परछाई शरीर से अलग हो जाती है।"-----.02.10

6)"ध्यान एक शादी की तरह है, जिसमें चिंतन और मनन का आपस में विवाह होता है, और इनके मिलन से समाधान रुपी सुंदर संतान की उत्पत्ति होती है।" ----------- 25.01.10

7)"यदि चित्त सहस्त्रार से ऊपर रहता है तो, यह "आदि शक्ति" का संवाहक होता हैऔर यदि सहस्त्रार से नीचे रहता है तो, बुराइयों का ही प्रसार करता है। "-------- 26.09.09
("attention is the carrier of "Aadi Shakti" when it is above Sahastrara, it becomes the conveyor of evils when it is below Sahastrara")

8)"Negativity eats positivity and positivity eats negativity. Both are the diet of each others."
("नाकारात्मकता, साकारात्मकता को खाती है, साकारात्मकता, नाकारात्मकता को खाती हैदोनों ही एक दूसरे का भोजन हैं।"------- 10.08.08

9)"When Kundalini rises and resides at Sahastrara, it becomes a "Purifier. It eats negativity and emits positivity."("जब कुण्डलिनी सहस्त्रार पर रहने लगती है तो ये शोधिकरण यंत्र बन जाती हैयह नाकारात्मकता को खाती है व् साकाराक्त्मकता को उगलती है।"------ 11.08.08

10)"जब भी कभी ज्ञान रुपी दीपक हमारे हृदय में जलता है तो कीट पतंगों की भांति अनेकों दुःख तकलीफ उस प्रकाश की ओर तेजी से निकल निकल कर आतें हैं व् नष्ट होते जातें हैं."------ 09.08.08

11)"मुक्ति का वास्तविक मायने लाभ-हानि, व् मान-अपमान के विचारों से ऊपर उठना है."
--- 08.08.08

12)"ध्यान का असली मतलब चित्त को कुण्डलिनी व् मन के साथ रखकर नित नवीन चैतन्य धाराओं को सहस्त्रार के माध्यम से हृदय तक सोखते जाना है."----- 19.07.08

13)"भूतकाल की खाद के द्वारा ही वर्तमान के पौधे को पुष्ट किया जा सकता है, और खाद किसी के पदार्थ के सड़ने पर ही बनती हैभूतकाल का केवल यही सदुपयोग हैपर खाद थोड़ी थोड़ी ही डाली जाती है, वर्ना पौधा मर सकता है."------ 18.07.08

14)"एक साधक के लिए दुःख भोजन के समान है और सुख अमानत की तरह हैइसीलिए दुःख चुपचाप खाओ और यदि सुख मिले तो उसे बाँट दो."---- 17.07.08

15)"कुण्डलिनी जाग्रत होने के बाद सबसे पहले एक ही कार्य करती है वह है "भव" का मंथनकभी विष निकलेगा व् कभी अमृत, धेर्य रखें, सभी कुछ ठीक हो जायगायह अनवरत चलता है जबतक पूर्ण रूप से विष और अमृत बहार निकल जाएँऔर दोनों का असर हम सब पर जरूर होता हैये और बात है की एक गिलास विष का असर दो बूँद अमृत से ही समाप्त हो जाता है."------- 10.10.07

16)"ध्यान पूर्ण जाग्रत अवस्था है, बेसुधी नहीं हैअत: दुःख को भुलाने के लिए अत्याधिक भजन, नृत्य व् मन्त्रों में डूबना बेसुधी की ओर बढ़ना ही हैयह भी एक प्रकार की नशे की प्रवृति ही हैध्यान, सर से पांव तक चैतन्य लहरियों की अनुभूति करते जाना ही है।"------ 09.10.07

17)"नियमबढ़ ध्यान आपके मन व् मस्तिष्क को संतुष्ट करता हैऔर ध्यानस्थ रहकर हर प्रकार का कार्य करना आत्मा को सुकून देता हैआत्मा का एकमात्र भोजन है, वह है निरंतर ध्यानस्थ रहना।"--------08.10.07

18)"निगेटिविटी से बचने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को करने से अच्छा है कि इसके रहने के स्थानों को चैतन्य के सीमेंट से भर दिया जाये, क्योंकि धोने से गड्डे और गहरे हो जातें हैं, और निगेटिविटी और ज्यादा स्थान में समाती जाती है."------- 07.10.07

19)"Negativity is not transferable, it is not possible, yes, our own negativity can be awakened by the person who is having negativity in a flourished state."------ 09.08.10
("किसी की नकारात्मकता किसी के अंदर प्रवेश नहीं कर सकती, क्योंकि यह संभव नहीं है, हाँ किसी के नकारात्मक प्रभाव से हमारे अंदर की नाकारात्मकता जाग अवश्य सकती है।")

20)"यदि चक्रों को ठीक रखना चाहते हैं तो चालाकी दिखाना, तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना, कूटनीति करने का त्याग कर देंचक्र स्वत ही ठीक रहेंगेइन सभी कार्यों से भय की उत्पत्ति होती है व् भय चक्र ख़राब करता है
-------- 26.08.07

21)"मानव खोने को कभी तैयार नहीं होता, इसलिए कभी पा नहीं पाताखोना पाने, के लिए इंधन का काम करता है, जैसे जैसे आप खोते जाते हैं, वैसे वैसे पाने का मार्ग खुलता जाता है, और पाने के बाद खोने का गम नहीं रहता।"
--------- 26.08.07

22)"सभी "श्री माँ" की बगिया के विभिन्न प्रकार के पुष्प हैं, अत: एक दूसरे जैसा बनने की अभिलाषा क्यूँ ? सभी
अलग अलग प्रकार की सुगंधी बिखेरने के लिए जन्मे है."--------- 25.08.07

23)"सहज योग को बढाने के लिए केवल एक ही कार्य करना है कि एक दूसरे को जाग्रति देने से रोका जाये, क्योंकि यह देवताओं के माध्यम से स्वत: ही बढ़ रहा हैकृपया विरोध करें। "----- 26.06.07

24)"सहज योग एक बहुत बड़ा पानी का जहाज है, जिस पर समस्त सहस्त्रार से जन्मे बच्चे उपस्थित हैंकोई कहीं बैठा है, कोई कहीं टहल रहा है, सभी को "श्री माँ" के द्वारा जहाज के माध्यम से ले जाया जा रहा हैअत: जहाज पर दौड़ लगाकर एक दूसरे से आगे निकलने कि प्रतिस्पर्धा क्यों ? एक दूसरे की आलोचना क्यों ? सभी जहाज पर बैठ कर एक दूसरे की अनुभूतियों का आनंद उठायें। "----------25.06.07

25)"सहज संस्था, एक साधक का घर, सहजयोग उसका शरीर व् प्राण "श्री माँ" हैं."------ 25.06.07

------------------------Narayan


"Jai Shree Mata Ji"

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