Tuesday, August 17, 2010

"Impulses"---"चिंतन"-----Contemplation---------4-------17.08.10

"Impulses"---"चिंतन"

1) "ज्ञान की गंगा दो किनारों के बीच में ही बहती है जिसमे पहला किनारा नकारात्मकता का व् दूसरा किनारा सकारात्मकता का होता है."("The river of knowledge flows in between two ends, one end belongs to Negativity and other end belongs to Positivity.")

2)"उपलब्धि वो नहीं होती जिसको हम सभी पाना चाहतें हैं, उपलब्धि वो होती है जिसे परमात्मा अपनी इच्छा से हमें देते हैं"

3) "जब मनुष्य का दिमाग, मन व् हृदय एक हो जातें हैं, तभी एकाकारिता घटित होती है"

4) "परेशानी का वास्तविक मतलब:-परे+शा+नी, परे=पार ब्रह्म, शा=शरण से आना, नी=नीर(अमृत) यानि पार ब्रह्म की शरण से आने वाला नीर (अमृत) तो फिर कैसी परेशानी ? " ऐसे ही प्रशाद का मतलब है यानि पार ब्रह्म की शरण से जो दिया जा रहा है"

5) "केवल दो ही चीजो के लिए प्रयास वांछित है, प्रथम, ईमानदारी व् पूर्ण निष्ठां से अपना व् अपने परिवार का पेट भरने के लिए, दूसरा, परमपिता, परमात्मा से लगातार संपर्क बनाये रखने के लिए"

6) "यदि तीन चीजे हमें हमारे जीवन में उपलब्ध हैं, तो हमारे कई पूर्व जन्मो के अच्छे कर्मो का प्रताप है और वो हैं, अच्छा स्वास्थ, भरपेट भोजन व् परमात्मा से संपर्क बनाये रखने का मार्ग बाकि सब तो बोनस है, मालिक की मर्जी से ही मिलेगा, उस पर हमारा अधिकार नहीं है "

7) "प्रभु के ध्यान के लिए हमें छै चीजो की आवशयक्ता नहीं है, यानि आँख, कान, मुख, हाथ, पांव और दिमाग केवल तीन चीजे ही चाहियें, सहस्त्रार चैतन्य में डूबा हुआ, मध्य हृदय चैतन्य को सोखता हुआ और चित्त दोनों स्थानों पर चैतन्य का आनंद लेता हुआ "

8) " श्री माँ कहती हैं,"तुम सब दीपक की तरह हो" हम सब बहुत खुश होते है, कि हम "श्री माँ" के दीपक हैं साथियों क्या आप सब दीपक को समझते हैं ? जरा हमारी नजर से भी दीपक को देखिये "दीपक मिटटी का है वह हमारा शरीर है, उसका तेल हमारी आयु है और बाती है हमारा अस्तित्व जिसको कई जन्मो से हमने बड़े चाव से पाल पोस कर बड़ा किया है, सोच लीजिये इसी को जलना है यानि हम यदि अपने अस्तित्व को मिटाने को तैयार होंगे तभी प्रकाश होगा, यानि हम दीपक बन पाएंगे "

-------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

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