Monday, August 23, 2010

"Impulses"----चिंतन"-------Contemplation-------5--------23.08.10

"Impulses"---"चिंतन"

1) "यदि खून के रिश्ते आत्मा के रिश्तों में परिवर्तित हो पायें तो खून के रिश्ते अकसर खून ही पीते हैं। वास्तव में हृदय के रिश्ते ही केवल रिश्ते होते हैं अन्यथा बोझा होतें हैं। "

2) "संसार से पीड़ित होकर अकसर मानव परमात्मा की ओर अग्रसर होता है व् उन्हें खोजने का प्रयास करता है, और जब उन्हें पा जाता है तो पुन: संसार की ओर मुड़ता है, क्योंकि अब उसे संसार में भी परमपिता महसूस होते हैं यानि कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं रहती। "

3) "अकसर सहजी बिना किसी पुख्ता आधार के चर्चा करते हैं कि अमुक सहजी को "माँ" ने सहज से निकाल दिया, और उस व्यक्ति से बात तक नहीं करते, उसके बारे में बिना जानकारी के नकारात्मक चर्चा करते रहते हैं, अन्य सहजियों से कहतें हैं कि उस सहजी से मत मिलो , सहज से निकलने का वास्तविक मतलब चैतन्य लहरियों का समाप्त हो जाना है, क्या किसी ने उसकी लहरियां चैक की हैं या नहीं, ये बहुत गंभीर बात है क्योंकि ये मामला "श्री माँ" और उस सहजी के बीच का है, सहज में लाने वाली केवल "आदि शक्ति" होती हैं व् निकालने वाली भी "आदि शक्ति "ही होती , कोई अन्य सहजी नहीं, अत: बिना किसी सबूत के किसी सहजी के बारे में नकारात्मक चर्चा करना "श्री माँ" विरोधी है इससे "सहस्त्रार" "हृदय" चक्र बंद हो सकता है, सतर्क रहें

4) "एक वास्तविक सहजी एक पीपल के वृक्ष की तरह होता है, जो कार्बन डाई आक्साइड खाता है और सदा आक्सीजन छोड़ता है।"

5) "अक्सर सहजियों में ध्यान को लेकर मतभेद रहता है, कोई कैसे ध्यान करता है कोई कैसे ध्यान करता है, ध्यान में विभिन्नता स्वाभिक है, क्योंकि सभी की चेतना अपने अपने स्तर के हिसाब से ही विकसित होती है। "श्री माता जी" के लेक्चर सभी सुनते हैं पर अपनी अपनी गहनता के आधार पर ही समझते है, इसमें कोई झगडा नहीं होना चाहिएबल्कि ये सोचना चाहिए कि सभी के हृदयों में "श्री माँ" निवास करती हैं, यही "समता" हो सकती हैअत: ध्यान में एकरसता(uniformity) संभव ही नहीं है। "

6) "श्री माँ" के लेक्चर्स को लेकर आपस में डिबेट करने से अच्छा है कि जो भी हमने ध्यान में अनुभव किये हो केवल वही नए पुराने सहजियों को बताया जाए सिखाया जाए क्योंकि अपने अनुभवों को आसानी से साबित किया जा सकता हैबिना अपने अनुभव के मुख ही खोला जाये तो ही बेहतर होगा। "

7) "सहज योग एक बहुत बड़ी प्रयोग शाला कि तरह है जहाँ बहुत सारे(सहजी) वैज्ञानिक अपने अपने प्रयोग करते हैं नए- नए आसान- आसान तथ्यों को खोज खोज कर सारी मानव जाती को लाभान्वित करते हैं "श्री माँ" के सपनो को साकार करने में उनकी मदद करतें हैयदि इसे ऐसा लिया गया तो सहज योग संस्था की दीवारों में ही घुट कर दम तोड़ देगा "श्री माँ" के "अदि शक्ति" स्वरुप को सीमित कर देगाअत: इसको संस्था के नियमो में बांधना इसकी उपयोगिता को नष्ट करना ही हैसहज योग केवल "श्री माँ" से ही संचालित होता है संस्था सहजियों से, इसीलिए सहज योग से संस्था है संस्था से सहज योग नहीं। "

8) "एक तरफ तो हम अपने अपने गुरु तत्व को जगाने के लिए "श्री माँ" से प्रार्थना करते हैं कहते है "श्री माता जी हमें स्वम का गुरु बना दीजिये" और यदि किसी का गुरु तत्व जाग्रत हो जाता है और वह जाग्रति देने लगता है तो उसको रोका जाता है, कहा जाता है की जाग्रति देने का तरीका गलत, यह बात बड़ी हास्यापद है, क्योंकि कुण्डलिनी का जागरण केवल "आदिशक्ति" ही कर सकती हैं, ये बात सब भूल जाते हैंअत: एक दूसरे के गुरु तत्व का सम्मान करना चाहिएजब स्वम "श्री माता जी " ने बताया है कि दस गुरु होते हैं तो सभी कम से कम दस प्रकार से ही सहज सीखेगे बताएँगे।"

9) "सहज योग में "जगृति" देना साँस लेने के ही बराबर है, जैसे जैसे आप दूसरों को देते जाते हैं वैसे वैसे उन सभी की "माँ कुण्डलिनी" सबसे पहले आप ही को अपनी शक्तियां देती जाती है और आप उत्थान की ओर अग्रसर होते जातें हैंइसीलिए पाना देना है और देना पाना। "

10) "कई बरसो से सहज सेमीनार में जाने का मौका मिलता रहा है पर सेमीनार कहीं नजर नहीं आयासेमीनार का शब्द कोष में मतलब विचार गोष्ठी या विचार विनिमय होता हैये बात कभी भी नहीं दिखाई दीइतनी दूर दूर से सहजी सेमीनार मैं आते हैं पर एक दूसरे को मिलने सुनने का मौका ही नहीं होता, या तो संस्था के अधिकारीयों के लेक्चर्स होते हैं, या स्टेज शो, या फिर अस्पताल खुल जाता हैकम से कम पूरे दो दिन "आम " सहजियो को दिए जाएँ ताकि उन्होंने सहज किस किस तरीके से फैलाया उनके ध्यान में किस किस प्रकार की सूक्ष्म गतिविधियाँ घटित हुईं, यह बताने का सबको अवसर मिले।"

............................Narayan

                                                                      "Jai Shree Mata Ji"







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