Tuesday, August 10, 2010

"Impulses"---"चिंतन"----"Contemplation"--------3---------10.08.10

"Impulses"----"चिंतन"

1)"हृदय=हरी+दया यानि जहाँ सदा प्रभु की दया प्राप्त होती हैइसीलिए हृदय से संचालित मानव बहती नदी के सामान होता है, जहाँ नदी को ढलान मिलता है वह बहती चली जाती है, नदी अपना धरातल सुनिश्चित नहीं कर सकती, वो निर्जन स्थानों, रेगिस्तान, शमशान, सुन्दर सुन्दर घाटों व् जंगलों से सामान भाव में ही बहती है।"

2)"सहज योग की दूरबीन से "श्री माँ" को देखने से अच्छा है, कि "श्री माँ" की गोद में बैठकर "सहज योग" को देखा जाये।"

3)"हमारी नासिका की खूबी है कि यह हवा में से आक्सीजन ले लेती है व् हमारे स्थूल शरीर को पुष्ट करती है, और जब "माँ कुण्डलिनी" सहस्त्रार पर स्थापित हो जाती हैं तो सहस्त्रार दूसरी नासिका बनकर ब्रहम्मांड से ब्रह्म (निराकार) को गृहण करता है व् हमारे सूक्ष्म शरीर को प्लावित करता है।"

4)"हम सभी को मुख्यत: तीन स्थानों से विचार आते हैं, i) सर्वप्रथम मन से, जो केवल पूर्व घटनाओं कि स्मृतियों पर ही आधारित होते हैं व् मन सदा पुराने अनुभवों के आधार पर ही अपने भाव प्रगट करता है, ii) दूसरे, दिमाग से आते हैं, दिमाग सदा तूलनात्मक आधार पर हमें अपने विकल्प देता है, अमूमन दो तीन विकल्प जरूर देता है, iii) तीसरा स्थान यानि हृदय की यह विशेषता है कि यह सदा एक ही रास्ता बताता है और उसका कोई भी विकल्प नहीं होता और ही कोई पूर्व इतिहास होता हैऔर जब हृदय हमारा साथ देता है तो मध्य हृदय में एक सुखद खिंचाव व् सहस्त्रार पर भी खिचाव या शीतलता की अनुभूति होती है, मतलब सत्य हमारे साथ हैइसीलिए सदा, सुनो सबकी करो अपने हृदय की।"

5)"अहंकारी सदा दूसरे के गुणों को अपना बना कर अपना पोषण करता है व् दूसरों के दोषों का बखान करता है, एवम स्वाभिमानी सदा दूसरों के दोषों को अनदेखा कर के अपने गुणों से दूसरों को पोषित करता है, व् दूसरों के गुणों का सम्मान करता है, व् अपने अवगुणों का बखान करता है।"

6)"When and until "Central Heart Chakra" gets enlightened with the flow from Sahastrara, rest of the five chakras can not be nourished whether we spend the whole life in clearing all theChakras and Nadies. So it is better to awaken "Maa Jagdamba" who is capable to take care of all the Chakras. Because every Chakra has a peculiar need to be fed and a human is not capable to fulfill their requirement. As soon as our "Manah" gets involved in different feelings, our all the five Chakras show reflexes in the form of Catches, it is not so serious, the effect is not permanent, those will be cleared automatically accept Sahastrar and Central Heart. If both the important Chakra like Sahastrara and Central Heart caches, some thing is very serious, be alert, it is clear that some one is going against "Adi Shakti". To cure this, ultimate Surrender is badly needed."

7)"हमें चक्रों के देवताओं को जगाने की जरूरत इसलिए पड़ती है कि जो भी गुण इन चक्रों के देवताओं से हमें मिलें हैं हम उसी में लिप्त होकर अपने वास्तविक उत्थान से वंचित हो जाते हैं व् हमारा मन लाभ-हानि के भावों में जड़ हो जाता हैंऔर जब "माँ कुण्डलिनी" जागृत होकर सहस्त्रार पर विराज कर हमारे हृदय को "आदि शक्ति" की शक्तियां देतीं हैं तब जाकर "माँ जगदम्बा"उठती हैं व् समस्त चक्रों के भोजन का प्रबंध करतीं हैंअक्सर देखने को मिलता है कि साधक में यदि कोई एक गुण विकसित होता है तो वह केवल उसी में डूबकर अधोगति को प्राप्त होता है व् गहनता में उतर नहीं पता और ना ही सहज योग को आगे बढा पाता है, उसी को व्यवसाय बना लेता है, ये सबसे दुखद पहलू है।"

8)"We should not behave just like the police for catching all the Chakras, if you sense on your subtle system that any chakra of any one is catching, just throw your attention loaded with the energy of Sahastrara and Central Heart Chakra to your own particular Chakra, then the catch will be vanished very soon, instead of propagating amongst people that so and so Chakra of some one is catching. It is very shameful if we do so, because we all are one, and we all resides into the "Viraat" Shareer of "Shree Maa Adi Shakti."

9)"Ego=E+G+O= Energy Gone Out, When we become ego oriented ? When the circuit of vital energy(Adi Shakti) gets disconnected with our subtle system because of severe conditioning and rigidity of our mind. And bad fume of our outdated and rotten knowledge influences our Manah and Manah dominates our whole existence."

10)"दुखो को हृदय से स्वीकार करने से ही गहनता में वृद्धि होती है, क्योंकि गहराई के बिना प्रभु हमें अपनी शक्तियां नहीं दे सकते क्योंकि हल्का अस्तित्व उनको धारण करने योग्य नहीं होताइसीलिए हर प्रकार के दुःख व् तकलीफ एक साधक के लिए मल्टी विटामिन और प्रोटीन का ही कार्य करतें है ताकि मानव को जब भी परमात्मा सुख प्रदान करें तो वह उनको अच्छे से आत्मसात कर आनंदित हो सके।"

-------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"







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