Tuesday, August 10, 2010

"Impulses"---(चिंतन)--Contemplation------2--------09.08.10

"Impulses"----"चिंतन"

1)"ईर्ष्यालु व्यक्ति से समस्त देव गण नाराज हो जातें हैं, क्योंकि यही देव गण उसी व्यक्ति की आगे बढ़ने में सहायता कर रहे होतें हैं जिससे वह इर्ष्या करता है।"

2)"Imitation is limitation, because we usually lost our own originality by copying others without absorbing their contents. So first reception, second absorption and third excretion." ("यदि हम किसी की बिना तथ्यों को समझे नक़ल करतें हैं तो हम अपने को अनजाने में सीमित कर रहे होते हैं।")

3)"Originality----The reality of the Origin, should reflect from us."-

4)"If we want to tell some one about Sahaj Yoga then first raise one's Kundilini secretly, because Kundilini has full knowledge about Sahaj Yoga, the brain has no data stored in its memory. That's why people some times do not agree and listen properly."-

5)" स्वार्थी के लिए त्याग, और मूर्ख के लिए ज्ञान, दोनों ही व्यर्थ हैं."

6)"समर्पण =सम + अर्पण, जब तक दोनों नाड़ीयां सम अवस्था में हों तब तक हम "श्री माँ" को अर्पण करने योग्य नहीं होते। इसीलिए सब लोग अक्सर कहते हैं, कि "माँ हम सबकुछ समर्पित करतें हैं", फिर भी समर्पण नहीं हो पाता। जब दोनों हथेलियों में ऊर्जा का दौरा गोल गोल घूमता महसूस हो केवल उसी दशा में हम संतुलन में होते हैं, यानि सम अवस्था में होतें हैं। या फिर हृदय और सहस्त्रार में इक सुखद खिंचाव हो."

7)"समस्त प्रकार की तकनीक सहज योग को घटित करने यानि कुण्डलिनी को सहस्त्रार पर पहुचाने की मदद मात्र हैं, कुण्डलिनी के सहस्त्रार पर स्थापित होने के बाद इनकी कोई उपयोगिता नहीं रहती। जैसे कि रॉकेट का प्रयोग केवल अन्तरिक्ष यान को अन्तरिक्ष में पहुचाने के लिए ही किया जाता है।"

8)"निर्विचारिता=नि++विचारिता="नि" शब्द सहस्त्रार का स्वर है," " शब्द शक्ति का द्योतक है, यानि सहस्त्रार की शक्ति का विचार ही निर्विचारिता है, या सहस्त्रार पर "माँ आदि" का स्थान है, यानि "माँ आदी(निर्मला)" का विचार ही निर्विचारिता है। "विचारिता के लक्षण हैं चार, हानि-लाभ और मान-अपमान। इसके अतिरिक्त सब निर्विचरिता है."इसी प्रकार से निर्लिप्तता यानि सहस्त्रार या "श्री माँ" में ही लिप्त होना। दूसरा होता है निर्विकल्प यानि केवल सहस्त्रार या "श्री माँ" के आसरे ही रहना, यानि दिमाग नहीं चलाना।"

--------------------------Narayan


"Jai Shree Mata Ji"

No comments:

Post a Comment