Saturday, May 6, 2017

"Impulses"--362--"सहृदयता "

"सहृदयता "

"जो लोग हृदय से अच्छे व् जागरूक होते हैं वो सदा प्रयासरत रहते है कि किस तरह से लोग प्रसन्न हो सके क्योंकि उनके हृदय दूसरों की प्रसन्नता व् आनंद से ही खिलते हैं

ऐसे मानवों के हृदय में एक एक दिन "प्रभु" जागरूक हो ही जाते हैं। और "माँ प्रकृति" उनको पुरुस्कृत करती रहती है। क्योंकि उनका हृदय "परमात्मा" के हृदय जैसा होता है। "परमपिता" सदा अपनी समस्त संतानो को सदा प्रसन्न ही देखना चाहते हैं

इसके विपरीत कुछ ऐसे विकृत व् रोगी मानसिकता के लोग भी होते है जो दूसरे लोगों की पीड़ा को देखकर बेहद खुश होते हैं व् अपने 'अहंकार' को संतुष्ट होता महसूस करते हैं।

ऐसे लोगों के 'हृदय' से "ईश्वर" चले जाते हैं और फिर शुरू होती है "प्रकृति" व् ग्रह-नक्षत्रों की दंड प्रक्रिया और समस्त गणों, रुद्रों' देवी-देवताओं की नाराजगी की गाज ऐसे दुष्ट मानवो के ऊपर गिरनी प्रारम्भ हो जाती है और वो अपने इसी जीवन काल में अनेको प्रकार के नर्क भोगते हैं।

यदि हममे से कुछ लोग ऐसे निकृष्ट लोगों से घिरे हैं तो ऐसे लोगों के प्रति आंतरिक व् बाहरी प्रतिक्रिया कर अपने को पीड़ा पहुंचाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।  

बल्कि सहस्त्रार व् मध्य हृदए में जुड़कर सभी कुछ "श्री माँ" के "श्री चरणों" में छोड़कर निश्चिन्त हो जाएं, "उनकी " शक्तियां स्वतः ही ऐसे दुष्ट लोगों की व्यवस्था कर देंगी।"

-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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