Tuesday, May 16, 2017

'Impulses"--366--"ध्यान-भेद"

"ध्यान-भेद" 

"अक्सर सहाजियों के बीच एक चर्चा बनी ही रहती है और वो है किसी भी साधक/साधिका के द्वारा सही या गलत ध्यान कराने की। कुछ सहजी ये कहते सुने जा सकते हैं कि अमुक सहजी गलत ध्यान कराता है या अमुक सहजी अच्छा ध्यान कराता है।

कुछ लोग सहजी बहुत जोर देकर कहते हैं कि, 'हमें केवल और केवल "श्री माता जी" के द्वारा बताये गए तरीकों से ही ध्यान करना चाहिए, किसी भी अन्य ध्यानी के द्वारा कराया गया या बताया गया कोई भी तरीका गलत है।'

ध्यान तो केवल "परमपिता परमेश्वर" का ही होता चाहे ध्यान का माध्यम "श्री माँ" हो या "उनका" कोई भी बालक माध्यम बने,भला किसी और का ध्यान कैसे हो सकता है।

समस्त सहजी "श्री माँ" के ही तो यंत्र है, "उन्ही" के द्वारा ही तो उन्नत किये गए है, "उनके" "श्री चरणों" में ही तो सर नवाते हैं, "उन्ही" को तो अपने हृदए में महसूस करते हैं, "उन्ही" का 'सन्देश'' ही तो संसार में फैलाते है, "उन्ही" के 'प्रेम' में डूब कर आनंदित रहते हैं।

यदि हृदए से चिंतन करके देखा जाए तो महसूस होगा कि किसी भी प्रकार का भेद 'ध्यान' में मौजूद नहीं है, यदि कहीं भेद है तो वो है हम सभी की मॉनसिक समझ में। जो कि एक निश्चित स्तर यानि 'हृदए' के स्तर तक विकसित होने से पूर्व बनी ही रहती है।

क्योंकि हम सभी विभिन्न 'पूर्व-परिवेशों' में जन्म लेकर पले-बड़े होते हैं और हमारा मन भिन्न भिन्न संस्कारो से आच्छादित होता हैं।
जिसका प्रभाव हमारी चेतना पर "श्री चरणों" से जुड़ने के वाबजूद भी लंबे समय तक बना ही रहता है।

जिसके कारण हम सभी "श्री माँ" की बताई बातों का अपनी अपनी समझ के मुताबिक ही पालन करते हैं और धीरे धीरे विकसित होते हैं।
ध्यान का तो एकमात्र मतलब ही "प्रभु" का ध्यान है।

हाँ, ध्यान के प्रारंभिक तरीके अलग अलग हो सकते हैं क्योंकि वो तरीके सभी माध्यमों की अपनी अपनी चेतना के स्तर के अनुसार ही होते हैं। और ध्यान में मजा भी अपनी अपनी गहनता के आधार पर ही आता है।

किसी की नाड़ियों व् चक्रों में होने वाली परेशानी भी अपने यंत्र की स्थिति व् दशा के अनुसार ही महसूस होती है  इसका पता लगाने के लिए हमें अपने चित्त को समझना होगा, पूर्ण एकाग्रता के साथ इसका अध्यन करना होगा तभी हम सभी चित्त की बारीकियों को जान पाएंगे।

हमें बड़ी शिद्दत से इसका पीछा करना होगा कि वो यकायक कहाँ चला जाता है, किस सोच में डूब जाता है, किस किस चीज से प्रभावित होता रहता है, ये कहाँ पर अपना अधिकतर समय बिताता है, ये आखिर रहता कहाँ पर है।"

---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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