Wednesday, March 2, 2022

"Impulses"--577--"अनुभव विहीन ज्ञान है अज्ञान"

 "अनुभव विहीन ज्ञान है अज्ञान" 


*अनुभूति विहीन ज्ञान सुगन्धि विहीन पुष्प एक ही समान होते हैं।*

*ऐसे पुष्प देखने में तो सुंदर हो सकते हैं किन्तु स्नायु तन्त्र को आनंद नहीं दे पाते।*

"जो ज्ञान मात्र पढ़ने/सुनने/देखने एवम मानसिक समझ से प्राप्त होता है वह केवल और केवल मानव के मन के कोष में ही संचित होता है।

जिसके आधार पर विद्वान तो बना जा सकता है किन्तु ज्ञानी नहीं बना जा सकता।

और विद्वता शास्त्रार्थ की ओर ही प्रवुत करती है जिससे 'अहंकार' 'प्रतिअहंकार' के उत्पन्न होने की संभावना ही प्रबल हो जाती है।

*वास्तव में शास्त्रार्थ करना ऐसा ही है जैसे छाज को बिलोना, जिससे कभी मक्खन नहीं निकाला जा सकता।*


----------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


29-11-2020

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