Tuesday, March 29, 2022

"Impulses"--587--"सद् भाव ही ईश्वर को प्रिय "

 "सद् भाव ही ईश्वर को प्रिय " 


"यदि हमारा मन, चित्त, चेतना,भाव विचार सत्य के समर्थन सहयोग में नहीं हैं।

या हम अपनी किसी भी कुंठा या हीन भावना के कारण गुपचुप तरीके से किसी सच्चे व्यक्ति को नीचा दिखाने की सोच भी रहे होते हैं।

*तो हमारी यह अन्तः स्थिति "ईश्वरीय विधान" के अनुसार निकृष्ट कर्मों की श्रेणी में आएगी। और इसी के मुताबिक ही हमें अपने कर्मफल भोगने ही होंगे।*

*क्योंकि "परमात्मा" तो हमारे हृदय के भीतर विद्यमान हैं जिनसे" हम अपनी मनोदशा मनोभाव कभी भी छुपा नहीं सकते।*

फिर भले ही हम बाहरी रूप से कितने ही धार्मिक कल्याणकारी कार्य ही क्यों करते रहते हों।

*इसीलिए मन, वचन, कर्म भाव में अंतर रखने वाले ऐसे व्यक्तियों के जीवन में अचानक बहुत सी तकलीफे विपरीत स्थितयां धमकती हैं।*

और हमनें से अनेको लोग यह अक्सर कह उठते हैं कि,'अरे यह तो बहुत भले, नेक धार्मिक इंसान थे फिर भी इतनी परेशानी में क्यों फंस गए।"

-----------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


09-12-2020

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